Friday, December 17, 2010

माना तुमसे कमतर हैं

माना  तुमसे कमतर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं

पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं

वो  जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं

आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं

मौत से हम  घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ  सह कर हैं

अबकी साँसे थमी हैं  जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं

ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ  सारी घर पर हैं

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