बचपन का ज़माना होता था ....
खुशियों का ख़जाना होता था....
चाहत चाँद को पाने की...
दिल तितली का दीवाना होता था...
खबर ना थी की कुछ सुबह की...
ना शामो का ठिकाना होता था...
थके हरे स्कूल से आते...
पर खेलने भी जाना होता था....
दादी की कहानी होती थी...
परियों का फ़साना होता था...
बारिश में कागज की कश्ती थी...
हर मौसम सुहाना होता था...
हर खेल में साथी होते थे..
हर रिश्ता निभाना होता था...
पापा की डांट वो गलती पर....
मम्मी का मानना होता था....
गम की ज़ुबा ना होती थी...
ना ज़ख्मो का पैमाना होता था....
रोने की वजह ना होती थी...
ना हसने का बहाना होता था...
अब नहीं रही वो ज़िन्दगी...
जैसा बचपन का ज़माना होता था......
No comments:
Post a Comment