आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ ,
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
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