और समन्दर के पास बैठी हैं
पालकी के यूँ पास बैठी हैं
सारी सखियाँ उदास बैठी है
खुदकुशी ठान ली चिरागों ने
ऑंधियाँ बदहवास बैठी हैं
मौत ने खत्म कर दिये शिकवे
सौतनें आस पास बैठी हैं
बेटे आफ़िस, बहुएँ गईं दफ़्तर
घर सँभाले तो सास बैठी हैं
हो गई खत्म नस्ल रांझों की
हीर सारी उदास बैठी हैं
‘श्याम’ के आसपास बैठी हैं
गोपियाँ कर के रास बैठी हैं
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