Thursday, April 29, 2010

हीर सारी उदास बैठी हैं

दिल में लेकर वे प्यास बैठीं हैं
और समन्दर के पास बैठी हैं

पालकी के यूँ पास बैठी हैं
सारी सखियाँ उदास बैठी है

खुदकुशी ठान ली चिरागों ने
ऑंधियाँ बदहवास बैठी हैं

मौत ने खत्म कर दिये शिकवे
सौतनें आस पास बैठी हैं

बेटे आफ़िस, बहुएँ गईं दफ़्तर
घर सँभाले तो सास बैठी हैं

हो गई खत्म नस्ल रांझों की
हीर सारी उदास बैठी हैं

‘श्याम’ के आसपास बैठी हैं
गोपियाँ कर के रास बैठी हैं

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