Wednesday, April 7, 2010

हिंदी वादी

मेरा बचपन हिंदी में है, उसे अंग्रेजी-उर्दू संवाद नहीं आता,
 

माँ की लोरी, थपकी का मुझको अनुवाद नहीं आता |

मुझसे क्यूँ चाहती हो अदब विलायती या लखनवी,
 
छोटे शहर के लड़कों को देना दाद नहीं आता |

 
अशिक्षित हूँ, फ्रेंच, बंगाली, मराठी, तमिल, हिब्रू में,
 
मेरी कमी है कि मुझे इनमें करना विवाद नहीं आता |

 
लिखता, कहता हूँ कई आधी, सीखी जुबानों में,
 
पर विवशता है, परदेसी परोसी में वो स्वाद नहीं आता |

 
तुम जाओ जिस राह जाना चाहो, मेरा सुख मेरी मिट्टी में है,
 
मेरी सृष्टि है मेरी जन्मभूमि, मुझे बनना अपवाद नहीं आता |

 
भुला-सा दिया है तुमने इस विवेक को, कह मेरी सोच पुरानी है,
 
सहस्त्रों वर्षों की संस्कृति का मुझको करना त्याग नहीं आता |

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