Sunday, April 18, 2010

मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ

मन का गहरा खालीपन है और अकेला मैं हूँ
जैसे कोई निर्जन वन है और अकेला मैं हूँ

जिसको सुनकर रातों को मैं अक्सर जाग गया हूँ
मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ

मेरे घर के आस पास ही रहना चाँद सितारों
मेरी नींदों से अनबन है और अकेला मैं हूँ

पक्की करके रक्खूं मैं मन की कच्ची दीवारें
मेरी आँखों में सावन है और अकेला मैं हूँ

कुछ आधी पूरी कवितायें कुछ यादें कुछ सपने
मेरे घर में कितना धन है और अकेला मैं हूँ

जीवन के कितने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलें हैं
समय बचा अब कितना कम है और अकेला मैं हूँ

कभी कभी लगता है कोई करे प्यार की बातें
'रवि ' बड़ा नीरस जीवन है और अकेला मैं हूँ

कवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'

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