पुरस्कृत कविताः मनगढ़ का मन
पैसठ लोग एक पुण्यतिथि के उपलक्ष में
आयोजित एक भंडारे में
दीवाल गिरने से हुई भाग-दौड़ में
कुचलकर दबकर, मर गए,
मंदिर प्रबंधन ने कहा है कि
दुर्घटना परिसर से बाहर हुई है
लिहाजा मंदिर जिम्मेदार नहीं है
समय जिम्मेदार है, काल जिम्मेदार है
और जिसे इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेनी थी
वो दानवीर “कृपालु्“ मोह माया से दूर
किसी कोने में बैठा, भजन पद गा रहा था
मथुरा में भंडारे की योजना बना रहा था
इस घटना से
मनगढ का मन बहुत व्यथित है
और सोच रहा है
शायद कृपालुओं के पास
आध्यात्मिक शक्ति हो होती है
पर आत्मिक शक्ति और नैतिक साहस नहीं
तभी तो–
दिल्ली के इच्छाधारी बाबा
लड़कियों की इच्छा से "धंधा" करवाते हैं
कौन, कब, किसके साथ सोयेगी
इसका शेडडूल बनाते है
मीठी वाणी में रविशंकर
आर्ट आफ लिविंग का पाठ पढाते हैं।
और, देश के सारे श्री श्री, ज्ञानी, ध्यानी
संगम में पहले नहाने के लिए लड़ जाते है
और "अखाड़ा" कहलाते हैं।
"सम्भोग से समाधि की ओर"
लिखने वाले रजनीश
समाधि से सम्भोग की ओर जाते हैं
दुनिया पर आध्यात्म का नशा
चढ़ाने से पहले
अपने उपर थैलियम आजमाते हैं
और दिन भर ब्रह्मचर्य पर प्रवचन देने वाले
नित-आनंद , नित्यानंद
शिष्या को शैया तक ले आते हैं
और अपनी अनैतिकता को
प्राइवेशी का जामा पहनाते है।
हे! आध्यात्म का क्रेश-कोर्स चलने वाले संतो
एक बात कहूँ–
तुमने "आस्था" के जरिये
बहुतों की आस्था डगमगाई है
भक्ति विश्वास और प्रेम बेचकर
करोड़ों की सम्पति बनाई है
चाहो तो करोड़ों, अरबों और ले लो
पर कृपा करके अब
ये आनाचार बंद करो
हमारी आत्मा का दुराचार बंद करो
दुराचार बंद करो।
~देवेश पाण्डेय
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