Sunday, June 20, 2010

मल्हारगंज में ढलती थी होलकर शासकों की मुद्राएं




इंदौर. मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त महान के महामात्य आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने विश्वविख्यात ग्रंथ कौटिल्य अर्थशास्त्र में इस बात को रेखांकित किया है कि कोई भी राज्य शासन सुचारु रूप से चलाने के लिए उस राज्य की सोची-समझी अर्थनीति होना चाहिए। यह तथ्य प्राचीनकाल से वर्तमान काल तक अपना महत्व अक्षुण्ण बनाए हुए है।

जब से मालवा के महानगर इंदौर में होलकरी राज्य शासन कायम हुआ तब से लेकर सन् 1948 में राज्य के मध्यभारत में विलीनीकरण तक होलकर शासकों की मुद्राएं इंदौर के प्राचीन परिक्षेत्र मल्हारगंज में ढाले जाते रहे हैं। सूबेदार मल्हारराव के सिक्के चांदी के होते थे वे आज दुर्लभ हैं। अहिल्याबाई के नाम की रजत मुद्राएं लंदन के म्यूजियम में आज भी सुरक्षित हैं।

टकसाल बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना तुकोजीराव द्वितीय के कार्यकाल में बनाई गई थी। इसके क्रियान्वयन के लिए एक शिष्ट मंडल इंग्लैंड भेजा गया था जिसके दो सदस्य थे बक्षी खुमान सिंह और राज वैद्य पृथ्वीनाथ रामचंद्र। मशीनों का आयात भी इंग्लैंड से ही किया गया था।

सन् 1861 में सर स्टीवंस नाम के एक अंग्रेज सज्जन की इंदौर के मल्हारगंज के टकसाल में ऊंचे वेतन पर नियुक्ति की गई थी ताकि मुद्राओं के ढालने की क्रिया सुचारु रूप से हो सके। इस सबके चलते होलकर के सिक्के गुणवत्ता की दृष्टि से इतने अच्छे बने थे कि भारत की अंग्रेज सरकार भी उनसे ईष्र्या करने लगी थी। यहां तक कि स्वयं वायसराय ने प्रयत्न करके इंदौर की टकसाल को बंद करवाने तक का बीड़ा उठा लिया था।

होलकर की मुद्रा को हाली मुद्रा कहा जाता था जिसमें 100 के बदले 101 अंग्रेजी सिक्के देना पड़ते थे। फिरंगी नीति के कारण 1888 में सौ होलकर मुद्राएं 96 के बराबर रह गईं। इस टकसाल में बने सभी सिक्कों का कोषालय भी शिव विलास पैलेस के तलघर में स्थापित किया गया था जिसके प्रभारी थे रघुनाथ सिंह। मल्हारगंज में ढले सिक्कों पर मल्हार नगर अंकित होता था।

सपने में हुआ गणोशजी का साक्षात्कार- विश्व की सबसे ऊंची प्रथम पूज्य गणोश प्रतिमा मल्हारगंज में होने के कारण इंदौर का मंदिरों के संसार में अपना अलग महत्व है। 25 फीट ऊंची यह प्रतिमा 4 फीट ऊंची चौकी पर विराजमान है।

नारायणजी दाधिच नामक एक ब्राह्मण पंडित को उज्जैन में भगवान गणोश का स्वप्न में साक्षात्कार हुआ और उन्हें एक विशालकाय गणोश मंदिर स्थापना की प्रेरणा मिली। नारायणजी उज्जैन के प्रसिद्ध चिंतामन गणोश गए और इस दिशा में प्रयत्नशील रहे।

निश्चित ही गणोश की इच्छा के फलस्वरूप वे इंदौर आए और उन्होंने एक सज्जन जिनका नाम बांदर जी पटेल था से चर्चा की। उन्होंने सहज अपनी भूमि नारायणजी को प्रदान कर दी और इस प्रकार पत्थर के बजाय ईंट, चूना व नीला थोथा मिलाकर भव्य गणोश प्रतिमा का निर्माण करवाया गया।

तीसरा प्रमुख स्थान है मल्हारगंज मेनरोड पर स्थित आर्य समाज मंदिर। दशकों से यह भवन स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों के अनुरूप इंदौर सहित समस्त मध्यभारत में सुधारवादी आंदोलन का प्रेरणा केंद्र रहा है। इस केंद्र में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाली प्रमुख हस्तियों के नाम हैं डॉ. लालजी रावल, डॉ. चास्कर, लालाराम आर्य और पत्रकार वेदप्रताप वैदिक के पिता जगदीश प्रसाद वैदिक। क्षेत्र में स्थित पुरातन गोवर्धन नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख आस्था केंद्र है। इसी भवन की ऊपरी मंजिल पर देश के ख्याति प्राप्त संगीताचार्य पं. गोकुलोत्सव महाराज का निवास है।

इस परिक्षेत्र में ही स्थित किला मैदान के पास सन् 1957 में 3 से 6 जनवरी तक अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था जो भारतीय क्रांति के सौ वर्ष पूरे होने का एक उत्सव था। इसमें पं. नेहरू सहित देश के सभी तत्कालीन गणमान्य नेता इंदौर पधारे। मल्हारगंज में ही लेडी रीडिंग ट्रेनिंग स्कूल नामक लड़कियों की शिक्षा संस्था 1922 में तुकोजीराव तृतीय के जमाने में प्रारंभ की गई थी जो वर्तमान मे शारदा कन्या विद्यालय कहलाता है।

- जैसा कि इतिहासकार रमेश वैद्य ने बताया

 श्रेय-

http://www.bhaskar.com/article/MP-IND-holkar-rulers-currencies-had-been-moulded-in-malhaarganj-1076683.html

दि. २०/६/२०१० को दैनिक भास्कर से संकलित.

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