Friday, June 18, 2010

समय




चाँद का पानी पीकर,
 
लोग कर रहे होंगे गरारे...
 
और झूम रही होगी
 
जब सारी दुनिया...

 
मशीन होते शहर में,
 
कुछ रोबोट-से लोग
 
ढूँढते होंगे,
 
ज़िंदा होने की गुंजाइश।

 
किसी बंद कमरे में,
 
बिना खाद-पानी के
 
लहलहा रहा होगा दुःख...

 

माँ के प्यार जितनी अथाह दुनिया के
 
बित्ते भर हिस्से में,
 
सिर्फ नाच-गाकर
 
बन सकता है कोई,
 
सदी का महानायक
 
फिर भी ताज्जुब नहीं होता।

 

प्यार ज़रूरी तो है
 
मगर,
 
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
 
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....

 

सिगरेट के धुँए से
 
उड़ते हैं दुःख के छल्ले
 
इस धुँध के पार है सच
 
देह का, मन का...

 

समय केले का छिलका है,
 
फिसल रहे हैं हम सब...
 
दुनिया प्रेमिका की तरह है,
 
एक दिन आपको भुला देगी...

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