Monday, June 14, 2010

राहत इन्दौरी साहब की कलम से....



बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
 

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

 

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
 

है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए

 

ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
 

ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए

 

मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
 

मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए

 

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
 

मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए

 

मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
 

मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए

 

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
 

मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए

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