Tuesday, June 8, 2010

तुम तूफान समझ पाओगे ?


तुम तूफान समझ पाओगे ?

 

गीले बादल, पीले रजकण,
 

सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
 

लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
 

तुम तूफान समझ पाओगे ?


 

गंध-भरा यह मंद पवन था,
 

लहराता इससे मधुवन था,
 

सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
 

तुम तूफान समझ पाओगे ?


 

तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
 

नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
 

जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
 

तुम तूफान समझ पाओगे ?


 

- हरिवंशराय बच्चन

1 comment:

  1. बहुत सुंदर !
    कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

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