Friday, June 11, 2010

सपने टूटे



छूटे हमसे अपने छूटे !
 
मासूमों के सपने टूटे !!

 
भद्दी गाली, झापड़, घुड़की !
 
बचपन की क़िस्मत में झिड़की !
 
सब दरवाजे बंद; चिढ़ाए
 
हमको हर घर की हर ख़िड़की !
 
नज़र हमें आते हैं जब तब
 
हाथ-हाथ में पांच अंगूठे !!

 
किस-किस से की हाथापाई !
 
बीन के कचरा, रोटी खाई !
 
सिक्के चार हाथ में आए;
 
हाय! छीन ले पुलिस कसाई !
 
ऊपर से थाने ले जा कर
 
नंगा कर के बेंत से कूटे !!

 
बाबूजी कुछ काम दिला दें !
 
गाड़ी धो दूं, चाय पिला दें !
 
भले-भले लोगों की हरकत ?
 
हैवानों के हृदय हिला दें !
 
इज़्ज़त वाले अवसर पा'
 
बेबस बचपन की अस्मत लूटे !!

 
खूटे जग से सच्चे खूटे !
 
बाकी रह गए लम्पट झूठे !
 
हमसे ईश्वर-अल्ला रूठे !
 
भाग हमारे बिल्कुल फूटे !
 
गड़ते जाएंगे छाती में
 
इक-इक दिन में सौ-सौ खूँटे !!

 

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