Sunday, May 30, 2010

दैनिक प्रार्थना

अब सौप दिया है जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
 

है जीत तुम्हारे हाथों में और हा तुम्हारे हाथों में.
 

मेरा निश्चय बस एक यही, इक बार तुम्हे पा जाऊं मै,
 

अर्पण कर दू दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में,
 

जो जग में रहूँ, तो ऐसे रहूँ ज्यों जल में कमल का फूल रहे..
 

मेरे सब गुण-दोष समर्पित हो, करतार भगवान तुम्हारे हाथों में.
 

यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनू...
 

इस पूजन की इक इक रग का, तार तुम्हारे हाथों में.
 

जब जब संसार का कैदी बनू.. निष्काम भाव से कर्म करूँ..
 

फिर अंत समय में प्राण तजू, निराकार साकार तुम्हारे हाथों में..
 

मुझमे तुममें बस भेद यही.. मै नर हूँ.. तुम नारायण हो..
 

मै हूँ संसार के हाथों में. और संसार तुम्हारे हाथों में..
 

अब सौप दिया है जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
 

है जीत तुम्हारे हाथों में और हां तुम्हारे हाथों में.

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