Friday, May 28, 2010

मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,


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मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,

सांतिये नेह के बस बनाता रहा

नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,

दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,

फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ

तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,

मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !

इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,

अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!

दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

तुम मिले तो लगा प्रश्न हल हो गए,

वे जो मेरी तुम्हारी प्रतीक्षा में थे

तुम मिले तो लगा जैसे हट से गए,

सब वो संशय जो भावुक समीक्षा में थे !

फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम

मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!

देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

मौन उपमाएं हैं तुम को क्या मैं कहूं,

तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये

हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,

तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये

मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,

तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!

दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

1 comment:

  1. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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