Thursday, November 11, 2010

हमसफर यूँ अब मेरी मुश्किल हुई

हमसफर यूँ अब मेरी मुश्किल  हुई
 
राह जब  आसां हुई,  मुश्किल हुई

 
हम तो मुश्किल में सुकूं से जी लिए
 
मुश्किलों को पर बड़ी  मुश्किल हुयी

 
ख्वाब भी आसान  कब थे  देखने
 
आँख पर जब भी खुली, मुश्किल हुई

 
फिर अड़ा है शाम से जिद पे दिया
 
फिर हवाओं को बड़ी मुश्किल हुई

 
वो बसा है जिस्म की रग-रग में यूँ
 
जब भी पुरवाई चली, मुश्किल हुई

 
रोज़ दिल को हमने समझाया मगर
 
दिन ब दिन ये दिल्लगी मुश्किल हुई

 
मानता था  सच मेरी हर बात को
 
जब नज़र उस से मिली मुश्किल हुई

 
होश दिन में यूँ भी  रहता है कहाँ
 
शाम जब ढलने लगी मुश्किल हुई

 
क़र्ज़ कोई  कब तलक  देता रहे
 
हम से रखनी दोस्ती मुश्किल हुई

 
चाँद  तारे तो  बहुत ला कर दिए
 
उसने साड़ी मांग ली, मुश्किल हुई

 
नन्हे मोजों को  पड़ेगी  ऊन कम
 
आ रही है फिर ख़ुशी, मुश्किल हुई

 
रोज़   थोड़े  हम  पुराने  हो चले
 
रोज़ ही कुछ फिर नयी मुश्किल हुई

 
जो सलीका  बज़्म का आया  हमें
 
बात करनी और भी मुश्किल हुई

 
और सब   मंजूर थी   दुशवारियां
 
जब ग़ज़ल मुश्किल हुई, मुश्किल हुई

1 comment:

  1. बहुत खूब...
    इतना अच्छा लिखा आपने
    की तारीफ़ के लिए शब्दों को खोजने में मुश्किल हुई...

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