Tuesday, November 9, 2010

वन्दे मातरम् ।

वन्दे मातरम् ।
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भारत भक्तो भारत फिर से, वैभव पाये परम् ।
सब धर्मों से बढ़कर भाई, होता राष्ट्रधरम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
तत्ववेत्ता ऋषि मुनियों ने, परम सत्य ये जाना ।
शस्यश्यामला इस धरती को, अपनी माता माना ॥
माता भूमि और पुत्रा मैं, वेद वचन गुंजाया
वन्दे मातरम गाकर, बंकिम ने ये ही दोहराया ।
कहा राम ने जन्म भूमि, है स्वर्ग से भी उत्तम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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सबसे पहले मानवता ने, ऑंख यही थी खोली।
सीखी और सिखाई जग को प्रेम-प्रीति की बोली ।
ज्ञान को हमने नहीं बनाया लाभकमाऊ धंधा ।
जगद्गुरू थे हम कहते, ये तक्षशिला नालन्दा ।
देवों की भी चाह रही है, लेवें यहाँ जनम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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इस भूमि पर आकर, छह ऋतुओं ने रंग बिखेरे ।
समृद्धि ने भी आकर के, डाले अपने डेरे ।
शीत घाम और वर्षा, तीनों अपने रंग दिखाती ।
यहाँ मरूस्थल भी है तो, गंगा भी है लहराती ।
यहाँ जन्मना ही प्रमाण है, अच्छे पूर्व करम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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एक ज्योति जो सबके अंदर, करती है उजियारा ।
एक प्राण की सब जीवों के, अंदर बहती धारा ॥
पंचतत्व के पुतले हम सब, सबका एक रचयिता ।
उसी शक्ति ने विश्व रूप में, खुद को है विस्तारा ।
उसी एक के नाम कई, ये जाना सत्य परम् ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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होता क्या परिवार जगत को, भारत ने सिखलाया ।
सारी वसुधा है कुटुंब ये, दिव्य घोष गुंजाया ॥
सच को खुद ही जानो, केवल ऑंख मींच मत मानो ।
तलवारों की दम पर, अपना धर्म नहीं फैलाया ।
ज्ञान-ध्यान और दान का, जग में फहराया परचम।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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हमने पहले विस्तृत नभ के, नक्षत्रो को जाना ।
गणित, रसायन, भौतिकविद्या, के सच को पहचाना ॥
शिल्प, चिकित्सा, कला और, उद्योग हमारी थाती ।
इन विज्ञानों के दीपक में, रही धर्म की बाती ।
गुफा निवासी जटा-जूट, धारी वैज्ञानिक हम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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अब भी अपनी बुद्धि का, जग लोहा मान रहा है ।
भारत का ही है भविष्य, मन ही मन मान रहा है ।
भारत भक्ति को शंका से, न देखो जगवालों,
भारत का उत्थान ही, दुनियाँ का उत्थान रहा है ।
दुनियाँ है परिवार कहा, वसुधैव कुटुंबरम्
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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ज्ञान और विज्ञान का, हमने जग को पाठ पढ़ाया ।
गणित, रसायन, शिल्प कृषि को दूर दूर पहुचायाँ
मूल है भारत में ही उस, विज्ञान के अक्षय वट की,
सारे जग को आज मिल रही जिसकी शीतल छाया ॥
लक्ष्य रहा है बहुजन का हित बहूजनाय सुखम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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वो शक्ति जिसने भारत को, जग सिरमौर बनाया ।
वो बुद्धि जिसने अतीत में, ज्ञान का दीप जलाया ॥
नहीं हुई है लुप्त मनों में, सुप्त पड़ी है भाई
सूरज से अंगारों पर ज्यों, राख का बादल छाया ।
भरम हटे तो हम चमकेंगे, सूरज से चम-चम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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जो ऑंखें देख रही है, सच है उससे आगे ।
थोड़ी सी कठिनाई इससे, डरकरके न भागे ।
अंधियारा जो दूर दूर तक, देता हमें दिखाई
केवल तबतक है जबतक, हम आंख खोल न जागें ।
दूर हटायें अपने मन पर, छाया भेद भरम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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वेद महाभारत रामायण, गीता परम पुनीता ।
दिव्य सती अनुसुइया, सावित्री यशोधरा सीता ॥
वर्धमान, शंकर, गौतम, दशमेश सरीखे ज्ञानी
गूंज रही है अब भी जग में, जिनकी सीख सुहानी ।
दिया जगत को एक सत्य, कि दीपक बनो स्वयं ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।

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