सभी सपने नहीं टूटे अभी दो चार बाकी हैं
कहो अश्कों से आँखों में अभी अंगार बाकी हैं
खुदाया ये तेरी दुनिया में इतना फर्क सा क्यों है
कहीं पर भूख बाकी है कहीं ज़रदार बाकी हैं
खरीदारी बची है या बचे हैं बेचने वाले
बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं
अभी भी ज़िन्दगी का जश्न हम मिलकर मनाते हैं
हमारे देश में अब भी कई त्यौहार बाक़ी हैं
हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं
यूनिकवि-रवीन्द्र शर्मा 'रवि '
यूनिकवि-रवीन्द्र शर्मा 'रवि '
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