Tuesday, February 16, 2010

बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं


सभी सपने नहीं टूटे अभी दो चार बाकी हैं
 
 कहो अश्कों से आँखों में अभी अंगार बाकी हैं

 
खुदाया ये तेरी दुनिया में इतना फर्क सा क्यों है
 
कहीं पर भूख बाकी है कहीं ज़रदार बाकी हैं

 
खरीदारी बची है या बचे हैं बेचने वाले
 
बिकाऊ शहर में हर ओर अब बाज़ार बाक़ी हैं

 
अभी भी ज़िन्दगी का जश्न हम मिलकर मनाते हैं  

हमारे देश में अब भी कई त्यौहार बाक़ी हैं


हमे हैरान होकर देखते हैं देखने वाले
 
मिटाया है हमे हर बार हम हर बार बाक़ी हैं

यूनिकवि-रवीन्द्र शर्मा 'रवि '

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