Tuesday, February 16, 2010

मुफलिसी

मेरा लुट गया है सब कुछ.. मेरे पास कुछ नहीं है..

ना ही आसमां बचा है.. ना एक गज जमीं है..
 

सांसों की सिस्कियाँ ही.. देती हैं बस सुनाई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा................

 

हुए सपने सब छलावे.. और अपने सब पराये..
 

रिश्ते भी ऐसे रिसते.. कोइ घाव रिसता जाये..
 

गमे दास्ताँ लिखी तो.. अश्को ने आ मिटाई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा................

 

शमशान सी थी महफिल.. गाये जो गीत हंसकर..
 

कोई न देखता था.. पंजों के बल उचककर..
 

मिलीं तालियाँ गजब की.. गमे दास्तां सुनाई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा................

 

जो थीं हंसी की बातें.. उडने लगीं हंसी में..
 

मैंने सुना है ऐसा.. होता है मुफलिसी में..
 

मेरे साथ जो हुआ तो.. हुई कौन सी बुराई..
 

मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..मेरी 

मुफलिसी को देखा................

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