आज फिर उनकी बात निकली .
यादो के सफ़र से जैसे कोई बारात निकली .
मै आज भी उसके इन्तजार में खड़ा था उसी मोड़ पर
जहा से आज वो उसके हमसफ़र के साथ निकली .
उसने किया है गुनाह दिल मेरे तोड़ कर .
शायद वो जानती है ...
इसीलिए आज वो झुकी नज़र के साथ निकली .
Dr. Saab
Thursday, December 30, 2010
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
काफी अरसा बीत गया ,
ना जाने वो कैसी होगी .
वक़्त की सारी कडवी बातें
चुप चुप के वो सहती होगी .
अब भी भीगी बारिश में वो
बिन छतरी के चलती होगी .
मुझसे बिछड़े अरसा हो गया .
अब वो किससे लडती होगी .
अच्छा था जो साथ में थे ..
बाद में उसने सोचा होगा .
अपने दिल की सारी बातें ,
खुद ही खुद से करती होगी ..
आंखे नाम भी होती होगी .
याद वो जब भी करती होगी .
काफी अरसा बीत गया..
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
Dr. Chirayu Mishra
ना जाने वो कैसी होगी .
वक़्त की सारी कडवी बातें
चुप चुप के वो सहती होगी .
अब भी भीगी बारिश में वो
बिन छतरी के चलती होगी .
मुझसे बिछड़े अरसा हो गया .
अब वो किससे लडती होगी .
अच्छा था जो साथ में थे ..
बाद में उसने सोचा होगा .
अपने दिल की सारी बातें ,
खुद ही खुद से करती होगी ..
आंखे नाम भी होती होगी .
याद वो जब भी करती होगी .
काफी अरसा बीत गया..
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
Dr. Chirayu Mishra
Wednesday, December 29, 2010
नशा
नशा जरुरी है...
ज़िन्दगी के लिए...
पर सिर्फ शराब ही नहीं है बेखुदी के लिए.....
किसी की महोब्बत में डूब कर तो देखो....
बड़ा हसीं समंदर है.....
खुदखुशी के लिए.......
Maoo~
ज़िन्दगी के लिए...
पर सिर्फ शराब ही नहीं है बेखुदी के लिए.....
किसी की महोब्बत में डूब कर तो देखो....
बड़ा हसीं समंदर है.....
खुदखुशी के लिए.......
Maoo~
Thursday, December 23, 2010
अच्छा लगता है
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
-नवीन चतुर्वेदी
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
-नवीन चतुर्वेदी
अनवरत
मै मांगती हूँ
तुम्हारी सफलता
सूरज के उगने से बुझने तक
करती हूँ
तुम्हारा इंतजार
परछाइयों के डूबने तक
दिल के समंदर में
उठती लहरों को
रहती हूँ थामे
तुम्हारी आहट तक
खाने में
परोस के प्यार
निहारती हूँ मुख
महकते शब्दों के आने तक
समेटती हूँ घर
बिखेरती हूँ सपने
दुलारती हूँ फूलों को
तुम्हारे सोने तक
रात को खीच कर
खुद में भरती हूँ
नींद के शामियाने में
सोती हूँ जग-जग के
तुम्हारे उठने तक
इस तरह
पूरी होती है यात्रा
प्रार्थना से चिन्तन तक।
Monday, December 20, 2010
जान बाकि है ...
दुआ देने वाले का फरमान बाकि है ...
उनकी वफ़ा का इम्तहान बाकि है ...
मेरी मौत पर भी उनकी आँखों में आंसू नहीं ..
उन्हें शक है की मुझमे अभी जान बाकि है ...
उनकी वफ़ा का इम्तहान बाकि है ...
मेरी मौत पर भी उनकी आँखों में आंसू नहीं ..
उन्हें शक है की मुझमे अभी जान बाकि है ...
दोस्ती
कुछ यादें है उन लम्हों की ..
जिन लम्हों में हम साथ रहे ..
खुशियों से भरे जस्बात रहे ..
एक उम्र गुजारी है हमने ..
जहा रोते हुए भी हस्ते थे ...
कुछ कहते थे कुछ सुनते थे ..
हम रोज़ सुबह जब मिलते थे ..
तोह सब के चहरे खिलते थे ...
क्या मस्त वो मंज़र होता था ..
सब मिलकर बातें करते थे ..
हम सोचो कितना हस्ते थे ..
वो गूँज हमारी हंसने की ..
अब एक पुराणी याद बनी
ये बातें है उन लम्हों की ...
जिन लम्हों में हम साथ रहे .....
chetan bhandari
जिन लम्हों में हम साथ रहे ..
खुशियों से भरे जस्बात रहे ..
एक उम्र गुजारी है हमने ..
जहा रोते हुए भी हस्ते थे ...
कुछ कहते थे कुछ सुनते थे ..
हम रोज़ सुबह जब मिलते थे ..
तोह सब के चहरे खिलते थे ...
क्या मस्त वो मंज़र होता था ..
सब मिलकर बातें करते थे ..
हम सोचो कितना हस्ते थे ..
वो गूँज हमारी हंसने की ..
अब एक पुराणी याद बनी
ये बातें है उन लम्हों की ...
जिन लम्हों में हम साथ रहे .....
chetan bhandari
Friday, December 17, 2010
माना तुमसे कमतर हैं
माना तुमसे कमतर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वो जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं
आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
अबकी साँसे थमी हैं जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वो जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं
आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
अबकी साँसे थमी हैं जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
बचपन का ज़माना होता था......
बचपन का ज़माना होता था ....
खुशियों का ख़जाना होता था....
चाहत चाँद को पाने की...
दिल तितली का दीवाना होता था...
खबर ना थी की कुछ सुबह की...
ना शामो का ठिकाना होता था...
थके हरे स्कूल से आते...
पर खेलने भी जाना होता था....
दादी की कहानी होती थी...
परियों का फ़साना होता था...
बारिश में कागज की कश्ती थी...
हर मौसम सुहाना होता था...
हर खेल में साथी होते थे..
हर रिश्ता निभाना होता था...
पापा की डांट वो गलती पर....
मम्मी का मानना होता था....
गम की ज़ुबा ना होती थी...
ना ज़ख्मो का पैमाना होता था....
रोने की वजह ना होती थी...
ना हसने का बहाना होता था...
अब नहीं रही वो ज़िन्दगी...
जैसा बचपन का ज़माना होता था......
खुशियों का ख़जाना होता था....
चाहत चाँद को पाने की...
दिल तितली का दीवाना होता था...
खबर ना थी की कुछ सुबह की...
ना शामो का ठिकाना होता था...
थके हरे स्कूल से आते...
पर खेलने भी जाना होता था....
दादी की कहानी होती थी...
परियों का फ़साना होता था...
बारिश में कागज की कश्ती थी...
हर मौसम सुहाना होता था...
हर खेल में साथी होते थे..
हर रिश्ता निभाना होता था...
पापा की डांट वो गलती पर....
मम्मी का मानना होता था....
गम की ज़ुबा ना होती थी...
ना ज़ख्मो का पैमाना होता था....
रोने की वजह ना होती थी...
ना हसने का बहाना होता था...
अब नहीं रही वो ज़िन्दगी...
जैसा बचपन का ज़माना होता था......
Thursday, December 16, 2010
अंदाज
उसने दिन रात सताया मुझको इतना
की नफरत भी हो गई... और महोब्बत भी हो गई...
उसने इस अहतराम से मुझसे महोब्बत की...
के गुनाह भी न हुआ... और इबादत भी हो गई...
मत पूछ के उसके महोब्बत करने का अंदाज कैसा था...
उसके इस शिद्दत से गले लगाया की...
मौत भी न हुई... और जन्नत भी मिल गई...
- अनिवेश
की नफरत भी हो गई... और महोब्बत भी हो गई...
उसने इस अहतराम से मुझसे महोब्बत की...
के गुनाह भी न हुआ... और इबादत भी हो गई...
मत पूछ के उसके महोब्बत करने का अंदाज कैसा था...
उसके इस शिद्दत से गले लगाया की...
मौत भी न हुई... और जन्नत भी मिल गई...
- अनिवेश
और हम भुला ना सके ...
महोबत से महोबत को पा न सके ...
अपना हाल - ए -दिल उन्हें जता ना सके .
बिन कहे ही सब पढ़ लिया उनकी निगाहों ने ..
और हम चाहकर भी नज़रें चुरा ना सके ..
आज वो दूर सही हमसे लाख मगर ,
खुद को हमसे आजाद करा ना सके ...
कुछ टूटे वो ,
और कुछ हमे तोड़ गए ..
और एक हम थे
जो खुद को बचा ना सके ..
ना माँगा हमने ज़िन्दगी भर का वादा उनसे ..
वो तो चार दिन का भी साथ निभा ना सके ..
अब कहते है की वो प्यार नहीं खेल था ...
और हम उस खेल के कायदे भुला ना सके ...
न जीत सके वो कभी हमसे ..
और अपने से हम उन्हें कभी हरा ना सके ,,
थोडा वो तो थोडा हम हँसे साथ में ...
पर उस जीत के बाद भी कभी मुस्कुरा ना सके ...
गम ये नहीं की वो ख़फा है हमसे..
गम - ए -उल्फत से कभी उन्हें गुज़रा ना सके
फिर भी एक ठंडक सी है दिल में मेरे ...
के वो भूले नहीं ....
और हम भुला ना सके ...
Dr. Chirayu Mishra
अपना हाल - ए -दिल उन्हें जता ना सके .
बिन कहे ही सब पढ़ लिया उनकी निगाहों ने ..
और हम चाहकर भी नज़रें चुरा ना सके ..
आज वो दूर सही हमसे लाख मगर ,
खुद को हमसे आजाद करा ना सके ...
कुछ टूटे वो ,
और कुछ हमे तोड़ गए ..
और एक हम थे
जो खुद को बचा ना सके ..
ना माँगा हमने ज़िन्दगी भर का वादा उनसे ..
वो तो चार दिन का भी साथ निभा ना सके ..
अब कहते है की वो प्यार नहीं खेल था ...
और हम उस खेल के कायदे भुला ना सके ...
न जीत सके वो कभी हमसे ..
और अपने से हम उन्हें कभी हरा ना सके ,,
थोडा वो तो थोडा हम हँसे साथ में ...
पर उस जीत के बाद भी कभी मुस्कुरा ना सके ...
गम ये नहीं की वो ख़फा है हमसे..
गम - ए -उल्फत से कभी उन्हें गुज़रा ना सके
फिर भी एक ठंडक सी है दिल में मेरे ...
के वो भूले नहीं ....
और हम भुला ना सके ...
Dr. Chirayu Mishra
Tuesday, December 14, 2010
तलबगार है बहुत....
उस दिल-ए-हस्ती को हमसे प्यार है बहुत.....
मगर वो शख्स भी फ़नकार है बहुत.....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
और मिलता है ऐसे
के मेरा तलबगार है बहुत....
मगर वो शख्स भी फ़नकार है बहुत.....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
और मिलता है ऐसे
के मेरा तलबगार है बहुत....
तन्हा रहने नहीं देता.....
इश्क उसका मुझे तन्हा रहने नहीं देता...
साथ उसके ये ज़माना रहने नहीं देता...
महफ़िलो में मुझको रखता है वो तन्हा तन्हा...
जो तन्हाई में कभी मुझको तन्हा रहने नहीं देता.....
साथ उसके ये ज़माना रहने नहीं देता...
महफ़िलो में मुझको रखता है वो तन्हा तन्हा...
जो तन्हाई में कभी मुझको तन्हा रहने नहीं देता.....
तन्हाई थी....
मेरे इश्क में सच्चाई थी..
आसमा झुक जाये इतनी गहराई थी....
फिर भी खुदा को मंजूर न हुआ इश्क मेरा...
क्यूंकि नसीब में लिखी तन्हाई थी....
आसमा झुक जाये इतनी गहराई थी....
फिर भी खुदा को मंजूर न हुआ इश्क मेरा...
क्यूंकि नसीब में लिखी तन्हाई थी....
Tuesday, December 7, 2010
Monday, December 6, 2010
एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ ,
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
Saturday, November 27, 2010
सयानी हो गई
ख्वाहिशें, टूटे गिलासों सी निशानी हो गई।
जिदंगी जैसे कि, बेवा की जवानी हो गई।।
कुछ नया देता तुझे ए मौत, मैं पर क्या करूं
जिंदगी की शक्ल भी, बरसों पुरानी हो गई।।
मैं अभी कर्ज-ए-खिलौनों से उबर पाया नहीं
लोग कहते हैं, तेरी गुड़िया सयानी हो गई।।
आओ हम मिलकर, इसे खाली करें और फिर भरें
सोच जेहनो में नए मटके का पानी हो गई।।
दुश्मनी हर दिल में जैसे कि किसी बच्चे की जिद
दोस्ती दादा के चश्मे की कमानी हो गई।।
मई के ‘सूरज’ की तरह, हर रास्तों की फितरतें
मंजिलें बचपन की परियों की कहानी हो गई।।
जिदंगी जैसे कि, बेवा की जवानी हो गई।।
कुछ नया देता तुझे ए मौत, मैं पर क्या करूं
जिंदगी की शक्ल भी, बरसों पुरानी हो गई।।
मैं अभी कर्ज-ए-खिलौनों से उबर पाया नहीं
लोग कहते हैं, तेरी गुड़िया सयानी हो गई।।
आओ हम मिलकर, इसे खाली करें और फिर भरें
सोच जेहनो में नए मटके का पानी हो गई।।
दुश्मनी हर दिल में जैसे कि किसी बच्चे की जिद
दोस्ती दादा के चश्मे की कमानी हो गई।।
मई के ‘सूरज’ की तरह, हर रास्तों की फितरतें
मंजिलें बचपन की परियों की कहानी हो गई।।
Saturday, November 20, 2010
उसे इश्क क्या है पता नहीं
उसे इश्क क्या है पता नहीं
कभी शम्अ पर जो जला नहीं.
कभी शम्अ पर जो जला नहीं.
वो जो हार कर भी है जीतता
उसे कहते हैं वो जुआ नहीं.
है अधूरी-सी मेरी जिंदगी
मेरा कुछ तो पूरा हुआ नहीं.
न बुझा सकेंगी ये आंधियां
ये चराग़े दिल है दिया नहीं.
मेरे हाथ आई बुराइयां
मेरी नेकियों को गिला नहीं.
मै जो अक्स दिल में उतार लूं
मुझे आइना वो मिला नहीं.
जो मिटा दे ‘देवी’ उदासियां
कभी साज़े-दिल यूं बजा नहीं.
Friday, November 19, 2010
कबीर के दोहे
सन्त मिले सुख ऊपजै दुष्ट मिले दुख होय ।
सेवा कीजै साधु की, जन्म कृतारथ होय ॥
आब गया आदर गया, नैनन गया सनेह ।
यह तीनों तब ही गये, जबहिं कहा कुछ देह ॥
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध ।
कबीर संगत साधु की, करै कोटि अपराध ॥
Wednesday, November 17, 2010
उम्र के धूप चढ़ल
उम्र के धूप चढ़ल, धूप सहाते नइखे
हमरा हमराही के इ बात बुझाते नइखे
मंजिले इश्क में कइसन इ मुकाम आइल बा
हाय ! हमरा से “आई.लव.यू” कहाते नइखे
देह अइसन बा कि ई आँख फिसल जाताटे
रूप अइसन बा कि दरपन में समाते नइखे
जब से देखलें हईँ हम सोनपरी के जादू
मन बा खरगोश भइल जोश अड़ाते नइखे
कइसे सँपरेला अकेले उहां प तहरा से
आह! उफनत बा नदी, बान्ह बन्हाते नइखे
साथ में तोहरा जे देखलें रहीं सपना ओकर
याद आवत बा बहुत याद ऊ जाते नइखे
हमरा डर बा कहीं पागल ना हो जाए ‘भावुक’
दर्द उमड़त बा मगर आँख लोराते नइखे
हमरा हमराही के इ बात बुझाते नइखे
मंजिले इश्क में कइसन इ मुकाम आइल बा
हाय ! हमरा से “आई.लव.यू” कहाते नइखे
देह अइसन बा कि ई आँख फिसल जाताटे
रूप अइसन बा कि दरपन में समाते नइखे
जब से देखलें हईँ हम सोनपरी के जादू
मन बा खरगोश भइल जोश अड़ाते नइखे
कइसे सँपरेला अकेले उहां प तहरा से
आह! उफनत बा नदी, बान्ह बन्हाते नइखे
साथ में तोहरा जे देखलें रहीं सपना ओकर
याद आवत बा बहुत याद ऊ जाते नइखे
हमरा डर बा कहीं पागल ना हो जाए ‘भावुक’
दर्द उमड़त बा मगर आँख लोराते नइखे
हमे बहुत दुःख है !
ईश्वर उन सभी मूक पशुओ की आत्मा को शांति दे जो आज धर्म के नाम पर अपने जीवन की बलि देने जा रहे है....
एवं उन सभी मनुष्यों की सदबुद्धि दे जो ऐसे कार्यो में सलग्न है.....
आप सभी से निवेदन है... की आज ईश्वर से प्रार्थना जरुर करे....
एवं ये चलचित्र अवश्य देखे....
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http://www.earthlings.com/
एवं उन सभी मनुष्यों की सदबुद्धि दे जो ऐसे कार्यो में सलग्न है.....
आप सभी से निवेदन है... की आज ईश्वर से प्रार्थना जरुर करे....
एवं ये चलचित्र अवश्य देखे....
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Tuesday, November 16, 2010
तुम स्वाभिमान लिखना.
" तुमने कलम उठाई है तो वर्तमान लिखना ,
हो सके तो राष्ट्र का कीर्तिमान लिखना .
चापलूस तो लिख चुके हैं चालीसे बहुत ,
हो सके तुम ह्रदय का तापमान लिखना ..
महलों मैं गिरवी है गरिमा जो गाँव की ,
सहमी सी सड़कों पर तुम स्वाभिमान लिखना."
-- राजीव चतुर्वेदी
हो सके तो राष्ट्र का कीर्तिमान लिखना .
चापलूस तो लिख चुके हैं चालीसे बहुत ,
हो सके तुम ह्रदय का तापमान लिखना ..
महलों मैं गिरवी है गरिमा जो गाँव की ,
सहमी सी सड़कों पर तुम स्वाभिमान लिखना."
-- राजीव चतुर्वेदी
शबनमी होंठ ने छुआ - देवी नागरानी की ग़ज़ल
शबनमी होंठ ने छुआ जैसे
कान में कुछ कहे हवा जैसे.
लेके आँचल उड़ी हवा जैसे
सैर को निकली हो सबा जैसे.
उससे कुछ इस तरह हुआ मिलना
मिलके कोई बिछड़ रहा जैसे.
इक तबीयत थी उनकी, इक मेरी
मैं हंसी उनपे बल पड़ा जैसे
लोग कहकर मुकर भी जाते हैं
आंख सच का है आईना जैसे
वो किनारों के बीच की दूरी
है गवारा ये फ़ासला जैसे
शहर में बम फटा था कल लेकिन
दिल अभी तक डरा हुआ जैसे.
देख कर आदमी की करतूतें
आती मुझको रही हया जैसे
टूट कर शाख़ से गिरा पत्ता
वो खिज़ां से ही डर गया जैसे.
जिस सहारे में पुख़्तगी ढूंढी
था वही रेत पर खड़ा जैसे
-देवी नागरानी जी
कान में कुछ कहे हवा जैसे.
लेके आँचल उड़ी हवा जैसे
सैर को निकली हो सबा जैसे.
उससे कुछ इस तरह हुआ मिलना
मिलके कोई बिछड़ रहा जैसे.
इक तबीयत थी उनकी, इक मेरी
मैं हंसी उनपे बल पड़ा जैसे
लोग कहकर मुकर भी जाते हैं
आंख सच का है आईना जैसे
वो किनारों के बीच की दूरी
है गवारा ये फ़ासला जैसे
शहर में बम फटा था कल लेकिन
दिल अभी तक डरा हुआ जैसे.
देख कर आदमी की करतूतें
आती मुझको रही हया जैसे
टूट कर शाख़ से गिरा पत्ता
वो खिज़ां से ही डर गया जैसे.
जिस सहारे में पुख़्तगी ढूंढी
था वही रेत पर खड़ा जैसे
-देवी नागरानी जी
तनहाई
रातों को यह नींद उड़ाती तनहाई
टुकड़ा टुकड़ा वक़्त चबाती तनहाई
टुकड़ा टुकड़ा वक़्त चबाती तनहाई
यादों की फेहरिस्त बनाती तनहाई
बीते दुःख को फिर सहलाती तनहाई
रात के पहले पहर में आती तनहाई
सुबह का अंतिम पहर मिलाती तनहाई
सन्नाटा रह रह कुत्ते सा भौंक र हा
शब पर अपने दांत गड़ाती तनहाई
यादों के बादल टप टप टप बरस रहे
अश्कों को आँचल से सुखाती तनहाई
अश्कों को आँचल से सुखाती तनहाई
खुद से हँसना खुद से रोना बति याना
सुन सुन अपने सर को हिलाती तनहा ई
सुन सुन अपने सर को हिलाती तनहा
जीवन भर का लेखा जोखा पल भर में
रिश्तों की तारीख बताती तनहा ई
सोचों के इस लम्बे सफ़र में रह रह कर
करवट करवट मन बहलाती तनहाई
-प्रेमचंद सहजवाला
Friday, November 12, 2010
बुरा लगता है.....
यूँ तो चलती है हवा रोज़ फिज़ाओ में.
पर उसका उनको छू कर गुजरजाना बुरा लगता है..
उनकी हंसी है हमे सबसे प्यारी..
पर उनका किसी को देख के मुस्कुराना बुरा लगता है.
इन्तजार में उनके बिता देंगे सारी ज़िन्दगी...
लेकिन उसका यूँ मिलकर बिछड़ जाना बुरा लगता है...
कह तो देते है हम रोज़ बेवफ़ा उनको...
पर किसी और का उन पर इल्ज़ाम लगाना बुरा लगता है.
वो नाम तक न ले हमारा ज़िन्दगी भर, कोई गम नहीं...
पर ना जाने क्यूं उनके लबो पर किसी और का नाम आना बुरा लगता है.....
Dr. Chirayu mishra
पर उसका उनको छू कर गुजरजाना बुरा लगता है..
उनकी हंसी है हमे सबसे प्यारी..
पर उनका किसी को देख के मुस्कुराना बुरा लगता है.
इन्तजार में उनके बिता देंगे सारी ज़िन्दगी...
लेकिन उसका यूँ मिलकर बिछड़ जाना बुरा लगता है...
कह तो देते है हम रोज़ बेवफ़ा उनको...
पर किसी और का उन पर इल्ज़ाम लगाना बुरा लगता है.
वो नाम तक न ले हमारा ज़िन्दगी भर, कोई गम नहीं...
पर ना जाने क्यूं उनके लबो पर किसी और का नाम आना बुरा लगता है.....
Dr. Chirayu mishra
Dr. Chirayu Mishra
हकीकत के रूप में ख्वाब बनता गया.
धीरे धीरे वो चेहरा किताब बनता गया.
उसने कहा मुझे पानी अच्छा लगता है.
और मेरी आँखों का हर आंसू तालाब बनता गया.
धीरे धीरे वो चेहरा किताब बनता गया.
उसने कहा मुझे पानी अच्छा लगता है.
और मेरी आँखों का हर आंसू तालाब बनता गया.
Thursday, November 11, 2010
हमसफर यूँ अब मेरी मुश्किल हुई
हमसफर यूँ अब मेरी मुश्किल हुई
राह जब आसां हुई, मुश्किल हुई
हम तो मुश्किल में सुकूं से जी लिए
मुश्किलों को पर बड़ी मुश्किल हुयी
ख्वाब भी आसान कब थे देखने
आँख पर जब भी खुली, मुश्किल हुई
फिर अड़ा है शाम से जिद पे दिया
फिर हवाओं को बड़ी मुश्किल हुई
वो बसा है जिस्म की रग-रग में यूँ
जब भी पुरवाई चली, मुश्किल हुई
रोज़ दिल को हमने समझाया मगर
दिन ब दिन ये दिल्लगी मुश्किल हुई
मानता था सच मेरी हर बात को
जब नज़र उस से मिली मुश्किल हुई
होश दिन में यूँ भी रहता है कहाँ
शाम जब ढलने लगी मुश्किल हुई
क़र्ज़ कोई कब तलक देता रहे
हम से रखनी दोस्ती मुश्किल हुई
चाँद तारे तो बहुत ला कर दिए
उसने साड़ी मांग ली, मुश्किल हुई
नन्हे मोजों को पड़ेगी ऊन कम
आ रही है फिर ख़ुशी, मुश्किल हुई
रोज़ थोड़े हम पुराने हो चले
रोज़ ही कुछ फिर नयी मुश्किल हुई
जो सलीका बज़्म का आया हमें
बात करनी और भी मुश्किल हुई
और सब मंजूर थी दुशवारियां
जब ग़ज़ल मुश्किल हुई, मुश्किल हुई
Tuesday, November 9, 2010
वन्दे मातरम् ।
वन्दे मातरम् ।
——————————————–
भारत भक्तो भारत फिर से, वैभव पाये परम् ।
सब धर्मों से बढ़कर भाई, होता राष्ट्रधरम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
तत्ववेत्ता ऋषि मुनियों ने, परम सत्य ये जाना ।
शस्यश्यामला इस धरती को, अपनी माता माना ॥
माता भूमि और पुत्रा मैं, वेद वचन गुंजाया
वन्दे मातरम गाकर, बंकिम ने ये ही दोहराया ।
कहा राम ने जन्म भूमि, है स्वर्ग से भी उत्तम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
सबसे पहले मानवता ने, ऑंख यही थी खोली।
सीखी और सिखाई जग को प्रेम-प्रीति की बोली ।
ज्ञान को हमने नहीं बनाया लाभकमाऊ धंधा ।
जगद्गुरू थे हम कहते, ये तक्षशिला नालन्दा ।
देवों की भी चाह रही है, लेवें यहाँ जनम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
इस भूमि पर आकर, छह ऋतुओं ने रंग बिखेरे ।
समृद्धि ने भी आकर के, डाले अपने डेरे ।
शीत घाम और वर्षा, तीनों अपने रंग दिखाती ।
यहाँ मरूस्थल भी है तो, गंगा भी है लहराती ।
यहाँ जन्मना ही प्रमाण है, अच्छे पूर्व करम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
एक ज्योति जो सबके अंदर, करती है उजियारा ।
एक प्राण की सब जीवों के, अंदर बहती धारा ॥
पंचतत्व के पुतले हम सब, सबका एक रचयिता ।
उसी शक्ति ने विश्व रूप में, खुद को है विस्तारा ।
उसी एक के नाम कई, ये जाना सत्य परम् ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
होता क्या परिवार जगत को, भारत ने सिखलाया ।
सारी वसुधा है कुटुंब ये, दिव्य घोष गुंजाया ॥
सच को खुद ही जानो, केवल ऑंख मींच मत मानो ।
तलवारों की दम पर, अपना धर्म नहीं फैलाया ।
ज्ञान-ध्यान और दान का, जग में फहराया परचम।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
हमने पहले विस्तृत नभ के, नक्षत्रो को जाना ।
गणित, रसायन, भौतिकविद्या, के सच को पहचाना ॥
शिल्प, चिकित्सा, कला और, उद्योग हमारी थाती ।
इन विज्ञानों के दीपक में, रही धर्म की बाती ।
गुफा निवासी जटा-जूट, धारी वैज्ञानिक हम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
अब भी अपनी बुद्धि का, जग लोहा मान रहा है ।
भारत का ही है भविष्य, मन ही मन मान रहा है ।
भारत भक्ति को शंका से, न देखो जगवालों,
भारत का उत्थान ही, दुनियाँ का उत्थान रहा है ।
दुनियाँ है परिवार कहा, वसुधैव कुटुंबरम्
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
ज्ञान और विज्ञान का, हमने जग को पाठ पढ़ाया ।
गणित, रसायन, शिल्प कृषि को दूर दूर पहुचायाँ
मूल है भारत में ही उस, विज्ञान के अक्षय वट की,
सारे जग को आज मिल रही जिसकी शीतल छाया ॥
लक्ष्य रहा है बहुजन का हित बहूजनाय सुखम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
वो शक्ति जिसने भारत को, जग सिरमौर बनाया ।
वो बुद्धि जिसने अतीत में, ज्ञान का दीप जलाया ॥
नहीं हुई है लुप्त मनों में, सुप्त पड़ी है भाई
सूरज से अंगारों पर ज्यों, राख का बादल छाया ।
भरम हटे तो हम चमकेंगे, सूरज से चम-चम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
जो ऑंखें देख रही है, सच है उससे आगे ।
थोड़ी सी कठिनाई इससे, डरकरके न भागे ।
अंधियारा जो दूर दूर तक, देता हमें दिखाई
केवल तबतक है जबतक, हम आंख खोल न जागें ।
दूर हटायें अपने मन पर, छाया भेद भरम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
वेद महाभारत रामायण, गीता परम पुनीता ।
दिव्य सती अनुसुइया, सावित्री यशोधरा सीता ॥
वर्धमान, शंकर, गौतम, दशमेश सरीखे ज्ञानी
गूंज रही है अब भी जग में, जिनकी सीख सुहानी ।
दिया जगत को एक सत्य, कि दीपक बनो स्वयं ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
——————————————–
भारत भक्तो भारत फिर से, वैभव पाये परम् ।
सब धर्मों से बढ़कर भाई, होता राष्ट्रधरम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
तत्ववेत्ता ऋषि मुनियों ने, परम सत्य ये जाना ।
शस्यश्यामला इस धरती को, अपनी माता माना ॥
माता भूमि और पुत्रा मैं, वेद वचन गुंजाया
वन्दे मातरम गाकर, बंकिम ने ये ही दोहराया ।
कहा राम ने जन्म भूमि, है स्वर्ग से भी उत्तम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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सबसे पहले मानवता ने, ऑंख यही थी खोली।
सीखी और सिखाई जग को प्रेम-प्रीति की बोली ।
ज्ञान को हमने नहीं बनाया लाभकमाऊ धंधा ।
जगद्गुरू थे हम कहते, ये तक्षशिला नालन्दा ।
देवों की भी चाह रही है, लेवें यहाँ जनम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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इस भूमि पर आकर, छह ऋतुओं ने रंग बिखेरे ।
समृद्धि ने भी आकर के, डाले अपने डेरे ।
शीत घाम और वर्षा, तीनों अपने रंग दिखाती ।
यहाँ मरूस्थल भी है तो, गंगा भी है लहराती ।
यहाँ जन्मना ही प्रमाण है, अच्छे पूर्व करम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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एक ज्योति जो सबके अंदर, करती है उजियारा ।
एक प्राण की सब जीवों के, अंदर बहती धारा ॥
पंचतत्व के पुतले हम सब, सबका एक रचयिता ।
उसी शक्ति ने विश्व रूप में, खुद को है विस्तारा ।
उसी एक के नाम कई, ये जाना सत्य परम् ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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होता क्या परिवार जगत को, भारत ने सिखलाया ।
सारी वसुधा है कुटुंब ये, दिव्य घोष गुंजाया ॥
सच को खुद ही जानो, केवल ऑंख मींच मत मानो ।
तलवारों की दम पर, अपना धर्म नहीं फैलाया ।
ज्ञान-ध्यान और दान का, जग में फहराया परचम।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
हमने पहले विस्तृत नभ के, नक्षत्रो को जाना ।
गणित, रसायन, भौतिकविद्या, के सच को पहचाना ॥
शिल्प, चिकित्सा, कला और, उद्योग हमारी थाती ।
इन विज्ञानों के दीपक में, रही धर्म की बाती ।
गुफा निवासी जटा-जूट, धारी वैज्ञानिक हम ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
अब भी अपनी बुद्धि का, जग लोहा मान रहा है ।
भारत का ही है भविष्य, मन ही मन मान रहा है ।
भारत भक्ति को शंका से, न देखो जगवालों,
भारत का उत्थान ही, दुनियाँ का उत्थान रहा है ।
दुनियाँ है परिवार कहा, वसुधैव कुटुंबरम्
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
—————————————————————–
ज्ञान और विज्ञान का, हमने जग को पाठ पढ़ाया ।
गणित, रसायन, शिल्प कृषि को दूर दूर पहुचायाँ
मूल है भारत में ही उस, विज्ञान के अक्षय वट की,
सारे जग को आज मिल रही जिसकी शीतल छाया ॥
लक्ष्य रहा है बहुजन का हित बहूजनाय सुखम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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वो शक्ति जिसने भारत को, जग सिरमौर बनाया ।
वो बुद्धि जिसने अतीत में, ज्ञान का दीप जलाया ॥
नहीं हुई है लुप्त मनों में, सुप्त पड़ी है भाई
सूरज से अंगारों पर ज्यों, राख का बादल छाया ।
भरम हटे तो हम चमकेंगे, सूरज से चम-चम ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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जो ऑंखें देख रही है, सच है उससे आगे ।
थोड़ी सी कठिनाई इससे, डरकरके न भागे ।
अंधियारा जो दूर दूर तक, देता हमें दिखाई
केवल तबतक है जबतक, हम आंख खोल न जागें ।
दूर हटायें अपने मन पर, छाया भेद भरम् ॥
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
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वेद महाभारत रामायण, गीता परम पुनीता ।
दिव्य सती अनुसुइया, सावित्री यशोधरा सीता ॥
वर्धमान, शंकर, गौतम, दशमेश सरीखे ज्ञानी
गूंज रही है अब भी जग में, जिनकी सीख सुहानी ।
दिया जगत को एक सत्य, कि दीपक बनो स्वयं ।
वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।
Sunday, November 7, 2010
क्या खोया है, क्या पाया है
क्या खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते हैं
आओ साथियों, देशवासियो
भारत तुम्हें दिखाते हैं ॥
जिस गौ को गौमाता कहकर
गाँधी सेवा करते थे
जिसके उर में सभी देवता
वास हमेशा करते थे
हिन्द भले ही मुक्त हुआ हो
गौमाता बेहाल अभी
कटती गऊएँ किसे पुकारें
उनके सर है काल अभी
गौमाता की शोणित-बूँदें
जब धरती पर गिरती हैं
तब आज़ादी की व्याख्याएँ
ज्यों आरी से चिरती हैं
गौ भारत का जीवन-धन है
हिन्दू चिन्तन की धारा
गौमाता को जो काटे, वह
है माता का हत्यारा
कृष्ण कन्हैया की गऊओं की
गाथा करुण सुनाते हैं
कया खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते हैं ॥
हिन्द देश की भाषा हिन्दी
संविधान में माता है
मैकाले की अँग्रेजी से
भारत जाना जाता हैं
राजघाट से राजपाट तक
अँग्रेजी की धूम बड़ी
औ’ हिन्दी, झोपड़-पटटी में
कैसी है मजबूर खड़ी
न्यायालय से अस्पताल तक
भाषा अब अँग्रेजी है
हिन्दी संविधान में बन्दी
रानी अब अँग्रेजी है
मन्त्री जी से सन्त्री जी तक
बोलें सब अँग्रेजी में
हर काँलिज, हर विद्यालय में
डोंलें सब अँग्रेजी में
अपनी भाषा हिन्दी से हम
क्यों इतना कतराते हैं
क्या खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते है ॥
आज तुम्हें बतलाते हैं
आओ साथियों, देशवासियो
भारत तुम्हें दिखाते हैं ॥
जिस गौ को गौमाता कहकर
गाँधी सेवा करते थे
जिसके उर में सभी देवता
वास हमेशा करते थे
हिन्द भले ही मुक्त हुआ हो
गौमाता बेहाल अभी
कटती गऊएँ किसे पुकारें
उनके सर है काल अभी
गौमाता की शोणित-बूँदें
जब धरती पर गिरती हैं
तब आज़ादी की व्याख्याएँ
ज्यों आरी से चिरती हैं
गौ भारत का जीवन-धन है
हिन्दू चिन्तन की धारा
गौमाता को जो काटे, वह
है माता का हत्यारा
कृष्ण कन्हैया की गऊओं की
गाथा करुण सुनाते हैं
कया खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते हैं ॥
हिन्द देश की भाषा हिन्दी
संविधान में माता है
मैकाले की अँग्रेजी से
भारत जाना जाता हैं
राजघाट से राजपाट तक
अँग्रेजी की धूम बड़ी
औ’ हिन्दी, झोपड़-पटटी में
कैसी है मजबूर खड़ी
न्यायालय से अस्पताल तक
भाषा अब अँग्रेजी है
हिन्दी संविधान में बन्दी
रानी अब अँग्रेजी है
मन्त्री जी से सन्त्री जी तक
बोलें सब अँग्रेजी में
हर काँलिज, हर विद्यालय में
डोंलें सब अँग्रेजी में
अपनी भाषा हिन्दी से हम
क्यों इतना कतराते हैं
क्या खोया है, क्या पाया है
आज तुम्हें बतलाते है ॥
Tuesday, November 2, 2010
ख्वाब कब तक मेरे ज़वाँ रहते
ख्वाब कब तक मेरे ज़वाँ रहते,
रस्ते हमेशा तो नहीं आसाँ रहते।
मरने पर तो ज़मीं नसीब नहीं
जीते-जी कहो फिर कहाँ रहते।
शौक फर्मा रहे वो आग से खेलने का,
आबाद कब तक ये आशियाँ रहते।
अपना बना कर ग़र न लूटते हमें,
जाने कब तक मेरे राजदाँ रहते।
काबू में रहती मन की बेईमानी अगर,
गर्दिशों में भी हम शादमाँ रहते ।
सीखा न था मर-मर के जीना कभी,
आँधियों के हम दरमियाँ रहते ।
लाख सामाँ करो ’अनिल’ की बर्बादी का,
हम तो खुश रहते, जहाँ रहते ।
Tuesday, August 10, 2010
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है
बताता है हुनर हर शख़्स को वह दस्तकारी का
ज़रूरतमंद की इस शक्ल में इमदाद करता है
कमाता है हमेशा नेकियाँ कुछ इस तरह से वो
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है
कहा उसने कभी वो मतलबी हो ही नहीं सकता
मगर तकलीफ़ में ही क्यों ख़ुदा को याद करता है
कभी-भी कामयाबी ‘व्योम’ उसको मिल नहीं सकती
हक़ीकत जानकर भी वक़्त जो बरबाद करता है
ज़रूरतमंद की इस शक्ल में इमदाद करता है
कमाता है हमेशा नेकियाँ कुछ इस तरह से वो
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है
कहा उसने कभी वो मतलबी हो ही नहीं सकता
मगर तकलीफ़ में ही क्यों ख़ुदा को याद करता है
कभी-भी कामयाबी ‘व्योम’ उसको मिल नहीं सकती
हक़ीकत जानकर भी वक़्त जो बरबाद करता है
Sunday, June 20, 2010
मल्हारगंज में ढलती थी होलकर शासकों की मुद्राएं
इंदौर. मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त महान के महामात्य आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने विश्वविख्यात ग्रंथ कौटिल्य अर्थशास्त्र में इस बात को रेखांकित किया है कि कोई भी राज्य शासन सुचारु रूप से चलाने के लिए उस राज्य की सोची-समझी अर्थनीति होना चाहिए। यह तथ्य प्राचीनकाल से वर्तमान काल तक अपना महत्व अक्षुण्ण बनाए हुए है।
जब से मालवा के महानगर इंदौर में होलकरी राज्य शासन कायम हुआ तब से लेकर सन् 1948 में राज्य के मध्यभारत में विलीनीकरण तक होलकर शासकों की मुद्राएं इंदौर के प्राचीन परिक्षेत्र मल्हारगंज में ढाले जाते रहे हैं। सूबेदार मल्हारराव के सिक्के चांदी के होते थे वे आज दुर्लभ हैं। अहिल्याबाई के नाम की रजत मुद्राएं लंदन के म्यूजियम में आज भी सुरक्षित हैं।
टकसाल बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना तुकोजीराव द्वितीय के कार्यकाल में बनाई गई थी। इसके क्रियान्वयन के लिए एक शिष्ट मंडल इंग्लैंड भेजा गया था जिसके दो सदस्य थे बक्षी खुमान सिंह और राज वैद्य पृथ्वीनाथ रामचंद्र। मशीनों का आयात भी इंग्लैंड से ही किया गया था।
सन् 1861 में सर स्टीवंस नाम के एक अंग्रेज सज्जन की इंदौर के मल्हारगंज के टकसाल में ऊंचे वेतन पर नियुक्ति की गई थी ताकि मुद्राओं के ढालने की क्रिया सुचारु रूप से हो सके। इस सबके चलते होलकर के सिक्के गुणवत्ता की दृष्टि से इतने अच्छे बने थे कि भारत की अंग्रेज सरकार भी उनसे ईष्र्या करने लगी थी। यहां तक कि स्वयं वायसराय ने प्रयत्न करके इंदौर की टकसाल को बंद करवाने तक का बीड़ा उठा लिया था।
होलकर की मुद्रा को हाली मुद्रा कहा जाता था जिसमें 100 के बदले 101 अंग्रेजी सिक्के देना पड़ते थे। फिरंगी नीति के कारण 1888 में सौ होलकर मुद्राएं 96 के बराबर रह गईं। इस टकसाल में बने सभी सिक्कों का कोषालय भी शिव विलास पैलेस के तलघर में स्थापित किया गया था जिसके प्रभारी थे रघुनाथ सिंह। मल्हारगंज में ढले सिक्कों पर मल्हार नगर अंकित होता था।
सपने में हुआ गणोशजी का साक्षात्कार- विश्व की सबसे ऊंची प्रथम पूज्य गणोश प्रतिमा मल्हारगंज में होने के कारण इंदौर का मंदिरों के संसार में अपना अलग महत्व है। 25 फीट ऊंची यह प्रतिमा 4 फीट ऊंची चौकी पर विराजमान है।
नारायणजी दाधिच नामक एक ब्राह्मण पंडित को उज्जैन में भगवान गणोश का स्वप्न में साक्षात्कार हुआ और उन्हें एक विशालकाय गणोश मंदिर स्थापना की प्रेरणा मिली। नारायणजी उज्जैन के प्रसिद्ध चिंतामन गणोश गए और इस दिशा में प्रयत्नशील रहे।
निश्चित ही गणोश की इच्छा के फलस्वरूप वे इंदौर आए और उन्होंने एक सज्जन जिनका नाम बांदर जी पटेल था से चर्चा की। उन्होंने सहज अपनी भूमि नारायणजी को प्रदान कर दी और इस प्रकार पत्थर के बजाय ईंट, चूना व नीला थोथा मिलाकर भव्य गणोश प्रतिमा का निर्माण करवाया गया।
तीसरा प्रमुख स्थान है मल्हारगंज मेनरोड पर स्थित आर्य समाज मंदिर। दशकों से यह भवन स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों के अनुरूप इंदौर सहित समस्त मध्यभारत में सुधारवादी आंदोलन का प्रेरणा केंद्र रहा है। इस केंद्र में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाली प्रमुख हस्तियों के नाम हैं डॉ. लालजी रावल, डॉ. चास्कर, लालाराम आर्य और पत्रकार वेदप्रताप वैदिक के पिता जगदीश प्रसाद वैदिक। क्षेत्र में स्थित पुरातन गोवर्धन नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख आस्था केंद्र है। इसी भवन की ऊपरी मंजिल पर देश के ख्याति प्राप्त संगीताचार्य पं. गोकुलोत्सव महाराज का निवास है।
इस परिक्षेत्र में ही स्थित किला मैदान के पास सन् 1957 में 3 से 6 जनवरी तक अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था जो भारतीय क्रांति के सौ वर्ष पूरे होने का एक उत्सव था। इसमें पं. नेहरू सहित देश के सभी तत्कालीन गणमान्य नेता इंदौर पधारे। मल्हारगंज में ही लेडी रीडिंग ट्रेनिंग स्कूल नामक लड़कियों की शिक्षा संस्था 1922 में तुकोजीराव तृतीय के जमाने में प्रारंभ की गई थी जो वर्तमान मे शारदा कन्या विद्यालय कहलाता है।
- जैसा कि इतिहासकार रमेश वैद्य ने बताया
श्रेय-
http://www.bhaskar.com/article/MP-IND-holkar-rulers-currencies-had-been-moulded-in-malhaarganj-1076683.html
दि. २०/६/२०१० को दैनिक भास्कर से संकलित.
Friday, June 18, 2010
समय
चाँद का पानी पीकर,
लोग कर रहे होंगे गरारे...
और झूम रही होगी
जब सारी दुनिया...
मशीन होते शहर में,
कुछ रोबोट-से लोग
ढूँढते होंगे,
ज़िंदा होने की गुंजाइश।
किसी बंद कमरे में,
बिना खाद-पानी के
लहलहा रहा होगा दुःख...
माँ के प्यार जितनी अथाह दुनिया के
बित्ते भर हिस्से में,
सिर्फ नाच-गाकर
बन सकता है कोई,
सदी का महानायक
फिर भी ताज्जुब नहीं होता।
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
सिगरेट के धुँए से
उड़ते हैं दुःख के छल्ले
इस धुँध के पार है सच
देह का, मन का...
समय केले का छिलका है,
फिसल रहे हैं हम सब...
दुनिया प्रेमिका की तरह है,
एक दिन आपको भुला देगी...
किसको कौन उबारे!
बिना नाव के माझी मिलते
मुझको नदी किनारे
कितनी राह कटेगी चलकर
उनके संग सहारे
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
साठ रुपैया मजदूरी के
नौ की आग बुझाना
अपनी अपनी ढपली सबकी
सबके अलग शिकारे
बढ़ती जाती रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
अपनी-अपनी घातों में सब
किसको कौन उबारे!
पानी-पानी भरा पड़ा है
प्यासा मन क्या बोले
किसकी प्यास मिटी है कितनी
केवल बातें घोले
अपनी आँखों में सपने हैं
उनकी में सुख सारे
Monday, June 14, 2010
तुम्हारे प्यार की खुशबू
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे;
सुबह हो शाम हो दिन हो, सदा रहती मुझे घेरे॥
तुम्हारी याद में खोया रहा मैं, क्यों यहाँ अक्सर
मिले जो खत मुझे तुमसे, निकलता हूँ उन्हें पढ़कर
तुम्हारी राह तकता हूँ, मुझे भी तक रही है वह
बनाऊँ किस तरह उन पर, तुम्हारे ख्वाब के डेरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे...॥
बहुत बेचैन होता हूँ, अगर तुमको ना देखूँ तो
ये फूलों का मुकद्दर है, तुम्हारे पास फेंकूँ तो
उमंगों की कली, खिलकर मचलती है यहां अक्सर
तुम्हारे बिन सबेरे भी सताते हैं नजर फेरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे ..॥
तुम्हें अब हो गई फुरसत, ह्रदय में छा रहे हो तुम
हिमालय से बही गंगा, बहाये जा रहे हो तुम
चलो अब सीपियाँ ढूढ़ें, चलो मोती कहीं चुन लें
तुम्हारे साथ चलकर हम, उतर जायें कहीं गहरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे...॥
राहत इन्दौरी साहब की कलम से....
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
Friday, June 11, 2010
सपने टूटे
छूटे हमसे अपने छूटे !
मासूमों के सपने टूटे !!
भद्दी गाली, झापड़, घुड़की !
बचपन की क़िस्मत में झिड़की !
सब दरवाजे बंद; चिढ़ाए
हमको हर घर की हर ख़िड़की !
नज़र हमें आते हैं जब तब
हाथ-हाथ में पांच अंगूठे !!
किस-किस से की हाथापाई !
बीन के कचरा, रोटी खाई !
सिक्के चार हाथ में आए;
हाय! छीन ले पुलिस कसाई !
ऊपर से थाने ले जा कर
नंगा कर के बेंत से कूटे !!
बाबूजी कुछ काम दिला दें !
गाड़ी धो दूं, चाय पिला दें !
भले-भले लोगों की हरकत ?
हैवानों के हृदय हिला दें !
इज़्ज़त वाले अवसर पा'
बेबस बचपन की अस्मत लूटे !!
खूटे जग से सच्चे खूटे !
बाकी रह गए लम्पट झूठे !
हमसे ईश्वर-अल्ला रूठे !
भाग हमारे बिल्कुल फूटे !
गड़ते जाएंगे छाती में
इक-इक दिन में सौ-सौ खूँटे !!
Thursday, June 10, 2010
अपनी रातें काटा कर
तन्हाई को टा टा कर
कुछ तो सैर सपाटा कर
फटे पुराने चाँद को सी
अपनी रातें काटा कर
आवाज़ों में से चेहरे
अच्छे सुर के छाँटा कर
बेचैनी को चैन बना
दिल के ज्वार को भाटा कर
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
आवारा बन जा, नज़रें
खिड़की-खिड़की बाँटा कर
माना कर सारी बातें या
सारी बातें काटा कर
आँच चिढ़ाती है "आतिश "
तू लौ बन कर डाँटा कर
Tuesday, June 8, 2010
तुम तूफान समझ पाओगे ?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे ?
- हरिवंशराय बच्चन
गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे ?
- हरिवंशराय बच्चन
Tuesday, June 1, 2010
डॉ. राहत इन्दौरी
तूफानों से आंख मिलाऊँ , सैलाबों पे वार करूं...
मल्लाहों का चक्कर छोडू तैर के दरिया पार करू...
फूलों की दुकाने खोलो खुशबू का ब्यापार करू...
इश्क खता है तो ये खता, एक बार नहीं सौ बार करूं.
-राहत इन्दौरी
Monday, May 31, 2010
सरस्वती वंदना
" वीणा वादिनी वर दे ।
प्रिय स्वतंत्र रव , अमृत मंत्र नव ,
भारत में भर दे , वर दे ।
वीणा वादिनी वर दे ॥
काट अंध उर के बंधन स्तर ,
बहा जननि ! ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद , तम हर , प्रकाश भर
जगमग जग कर दे ।
वीणा वादिनी वर दे ॥
नव गति , नव लय , ताल छंद नव ,
नवल कंठ , नव जलद , मंद्र रव
नव नभ के नव विहग वृन्द को
नव पर , नव स्वर दे , वर दे
वीणा वादिनी वर दे ॥ "
प्रिय स्वतंत्र रव , अमृत मंत्र नव ,
भारत में भर दे , वर दे ।
वीणा वादिनी वर दे ॥
काट अंध उर के बंधन स्तर ,
बहा जननि ! ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद , तम हर , प्रकाश भर
जगमग जग कर दे ।
वीणा वादिनी वर दे ॥
नव गति , नव लय , ताल छंद नव ,
नवल कंठ , नव जलद , मंद्र रव
नव नभ के नव विहग वृन्द को
नव पर , नव स्वर दे , वर दे
वीणा वादिनी वर दे ॥ "
क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ
गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰
Sunday, May 30, 2010
दैनिक प्रार्थना
अब सौप दिया है जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में.
मेरा निश्चय बस एक यही, इक बार तुम्हे पा जाऊं मै,
अर्पण कर दू दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में,
जो जग में रहूँ, तो ऐसे रहूँ ज्यों जल में कमल का फूल रहे..
मेरे सब गुण-दोष समर्पित हो, करतार भगवान तुम्हारे हाथों में.
यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनू...
इस पूजन की इक इक रग का, तार तुम्हारे हाथों में.
जब जब संसार का कैदी बनू.. निष्काम भाव से कर्म करूँ..
फिर अंत समय में प्राण तजू, निराकार साकार तुम्हारे हाथों में..
मुझमे तुममें बस भेद यही.. मै नर हूँ.. तुम नारायण हो..
मै हूँ संसार के हाथों में. और संसार तुम्हारे हाथों में..
अब सौप दिया है जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में और हां तुम्हारे हाथों में.
है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में.
मेरा निश्चय बस एक यही, इक बार तुम्हे पा जाऊं मै,
अर्पण कर दू दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में,
जो जग में रहूँ, तो ऐसे रहूँ ज्यों जल में कमल का फूल रहे..
मेरे सब गुण-दोष समर्पित हो, करतार भगवान तुम्हारे हाथों में.
यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनू...
इस पूजन की इक इक रग का, तार तुम्हारे हाथों में.
जब जब संसार का कैदी बनू.. निष्काम भाव से कर्म करूँ..
फिर अंत समय में प्राण तजू, निराकार साकार तुम्हारे हाथों में..
मुझमे तुममें बस भेद यही.. मै नर हूँ.. तुम नारायण हो..
मै हूँ संसार के हाथों में. और संसार तुम्हारे हाथों में..
अब सौप दिया है जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में और हां तुम्हारे हाथों में.
Friday, May 28, 2010
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
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मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
सांतिये नेह के बस बनाता रहा
नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,
फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ
तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,
मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !
इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,
अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा प्रश्न हल हो गए,
वे जो मेरी तुम्हारी प्रतीक्षा में थे
तुम मिले तो लगा जैसे हट से गए,
सब वो संशय जो भावुक समीक्षा में थे !
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!
देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
मौन उपमाएं हैं तुम को क्या मैं कहूं,
तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
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