Sunday, March 27, 2011

भूख

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भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
मोह, लिप्सा व क्षुधा,
काम, प्रेम, आसक्ति के
कितने ही अवतरण लेकर...।
भूख ही पलती रही
घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और
लोभ के आवरण लेकर....।
देवासुर संग्राम क्या था?
राम का बनवास क्या था?
सीता-हरण, लंका विजय के
गर्भ में संत्रास क्या था?
यह चिरंतन सत्य है
प्रगति और खोज का आधार है...।
भूतली पर, भूगर्भ और आकाश में,
ऊर्जा के स्रोत और प्रकाश में,
झलकता बस भूख का संसार है...।
भूख न होती तो आदि पुरूष
अग्नि, चक्र को, क्या खोज पाता?
भूख के कारण ही कान्हा,
नाचता, मुरली बजाता...।
भूख के कारण ही भक्ति,
भूख के कारण ही भय है,
भूख ही देती है शक्ति,
भूख ही देती विजय है।
भूख बिन सब ज्ञान कैसा?
तपस्या और ध्यान कैसा?
धर्म कैसा, कर्म कैसा,
भूख बिन विज्ञान कैसा?
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।

Saturday, March 19, 2011

हिज्र का भी नसीब होता है।







दिल का रिश्ता अजीब होता है
दूर  है जो,  करीब होता है।

तन्हा रातों में चाँद भी तनहा
हिज्र का भी  नसीब होता है।

जानो दिल से जिसे भी चाहोगे
खुलूसे दिल का रक़ीब होता है।

देख लेगा  बिना  बहे  आँसू
माँ का दिल भी अजीब होता है।

शाख़े-गुल आँधियों में टूटेगी
सबका अपना सलीब होता है।

ख्वाब में रोटियाँ ही दिखती हैं
आदमी जब  ग़रीब होता है।

यूँ तो दिखता नहीं है वो ‘इबरत’
फिर भी मेरे क़रीब  होता है।

 -सुवर्णा शेखर दीक्षित

Saturday, March 12, 2011

नींद

जैसे ही जागता हूँ
सो जाता हूँ !
सोते हुए देखता हूँ
अपनी नींद टूटने का ख्वाब !
ख्वाब टूटता है हर रोज़
और नींद में बिखर जाता है
टूटे ख्वाब के चुभने से
नहीं टूटती नींद..
क्यों नहीं होता कुछ ऐसा
कि कभी सोते हुए
नींद भूल जाये
आंखें बन्द करना..
फिर कोई ख्वाब
मशाल लेकर
घुस जाये आंखों में
और लगा डाले आग
कम्बख्त नींद को !