Tuesday, October 18, 2011

सीख ले......

कोई रात पूनम
तो कोई है अमावस...
चांदनी उसकी
जो चाँद पाना सीख ले...
यूँ तो सभी आये है
जहाँ में रोते हुए
पर सारा जहाँ है उसका,
जो मुस्कुराना सीख ले...
कुछ भी नज़र न आये
अंधेरों में रहकर
रौशनी है उसकी
जो शमा जलना सीख ले...
हर गली में मंदिर
हर रह में मस्जिद है...
पर ईश्वर है उसका
जो सर झुकाना सीख ले...
हर सीने में दिल है
हर दिल में प्यार है...
प्यार मिलता है उसको
जो दिल लगाना सीख ले..
लोगो का काफिला
उसीके साथ होता है...
जो सच्चे दिल से
रिश्ते निभाना सीख ले...
ख़ुशी की तलाश में
ज़िन्दगी गुज़र जाती है...
पर खुशियाँ उन्ही को मिलती है..
जो दुसरो के गम मिटाना सीख ले......

Tuesday, October 11, 2011

आप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद.....

शरद ऋतू की इस भव्य एवं पावन पूर्णिमा के दिन ही मैंने इस भू-लोक पर जन्म लिया था....... और समय ने आज फिर से उस दिन को मुझसे मिलाया...... शुक्रिया करता हूँ... माता-पिता का.... गुरुओ का.... ईश्वर का... मित्रो का.... परिवारजनो का.... और उन सभी लोगो का..... जिन्होंने मुझे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर... आज सफलता के नए सोपानो पर ला खड़ा किया......

आप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद.....

आपका चेतन......
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On the Full moon of Autumn Season.... I land on this Earth..... and today Again this day come in my life.... I am Thankful to Parents.... My teachers.... God.... All Friends... Dearest Family Members.... and all those people who supported me directly or indirectly,,, and make my A Successful boy on this earth.....

Thank you all millions of time......

Yours Chetan Kumar Bhandari

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~~~~~शरद पूर्णिमा~~~~

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं... सम्पूर्ण वर्ष में आश्विन मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा ही षोडस कलाओं का होता है...मान्यता हैं कि... इस दिन चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है.... इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं....

कहते हैं कि.... इस रात को भगवान श्रीकृष्ण ने... अपनी भक्त गोपियो को महारास के लिए निमंत्रण दिया था...और... गोपिया भी लोक लाज छोड़कर, व्रज से वृन्दावन दौड़ी चली आई थी....

रासलीला को लेकर लोगो मे तरह तरह की भ्रांतिया हैं...और कई लोग मे रासलीला के साथ साथ श्रीकृष्ण के 16000 शादियो वाले प्रसंग को लेकर गलत धारणाए हैं... रुक्मणी महारानी थी...उनकी सात अन्य रानियाँ थी ....सत्यभामा, जांबवती, कालिंदी, मित्रविन्दा, सत्या, भद्रा...और कक्षमना... ये आठों रानिया दरअसल प्रकृति के आठ मूलभूत स्वभाव को दर्शाती है...इसका गहरा अर्थ ये भी है की ये आठों सिधान्त भगवान श्रीकृष्ण के नियंत्रण मे हैं...

Monday, June 27, 2011

Chanakya Niti -1

कार्येषु मंत्री करणेषु दासी रुपेषु लक्ष्मिः क्षमया धरित्री ।
स्नेहेषु माता शयनेषु वेश्या षटकर्मनारी कुल धर्म पत्नी ।।
-
An ideal wife will have these six virtues –
she will be like a counselor in dealing with
various situations, like a maid servant in
serving her husband, like Goddess Lakshmi
in beauty, like the earth in patience, like a
mother in giving love and be like a courtesan
in bedroom.
-Chanakya

Thursday, June 23, 2011

भूख

भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
मोह, लिप्सा व क्षुधा,
काम, प्रेम, आसक्ति के
कितने ही अवतरण लेकर...।
भूख ही पलती रही
घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और
लोभ के आवरण लेकर....।
देवासुर संग्राम क्या था?
राम का बनवास क्या था?
सीता-हरण, लंका विजय के
गर्भ में संत्रास क्या था?
यह चिरंतन सत्य है
प्रगति और खोज का आधार है...।
भूतली पर, भूगर्भ और आकाश में,
ऊर्जा के स्रोत और प्रकाश में,
झलकता बस भूख का संसार है...।
भूख न होती तो आदि पुरूष
अग्नि, चक्र को, क्या खोज पाता?
भूख के कारण ही कान्हा,
नाचता, मुरली बजाता...।
भूख के कारण ही भक्ति,
भूख के कारण ही भय है,
भूख ही देती है शक्ति,
भूख ही देती विजय है।
भूख बिन सब ज्ञान कैसा?
तपस्या और ध्यान कैसा?
धर्म कैसा, कर्म कैसा,
भूख बिन विज्ञान कैसा?
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।

Thursday, April 7, 2011

मेरी आंखों मे जरा इंक़लाब रहने दे

किसी जगह के लिए इंतख़ाब रहने दे
मैं एक सवाल हूँ मेरा जवाब रहने दे।


मैं जानता हूँ तू लिबास पसंद है लेकिन
मैं बेनक़ाब सही, बेनक़ाब रहने दे।


मैं बाग़ी नहीं पर उसके समझने के लिए
मेरी आंखों मे जरा इंक़लाब रहने दे।


तमाम उम्र गुनहगार जिया हूँ या रब
मेरे हक़ में मगर एक सवाब रहने दे।


तमाम शहर मेरे ख़्वाब तले सोया है
मत बेदार कर, तू ज़ेर-ए-ख़्वाब रहने दे।

Wednesday, April 6, 2011

उनको मैख़ाने में ले आओ

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अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे


सामने-चश्मे-गुहरबार के, कह दो, दरिया
चढ़ के गर आये तो नज़रों से उतर जायेंगे

ख़ाली ऐ चारागरों
होंगे बहुत मरहमदां
पर मेरे ज़ख्म नहीं ऐसे कि भर जायेंगे

पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्योंकर
पहले जब तक न दो-आलम
से गुज़र जायेंगे

आग दोजख़ की भी हो आयेगी पानी-पानी
जब ये आसी
अरक़-ए-शर्म से तर जायेंगे

हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जायेंगे

रुख़े-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहरो-मह
नज़रों से यारों के उतर जायेंगे

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उनको मैख़ाने में ले आओ, सँवर जायेंगे
 -मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़

Sunday, March 27, 2011

भूख

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भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
मोह, लिप्सा व क्षुधा,
काम, प्रेम, आसक्ति के
कितने ही अवतरण लेकर...।
भूख ही पलती रही
घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और
लोभ के आवरण लेकर....।
देवासुर संग्राम क्या था?
राम का बनवास क्या था?
सीता-हरण, लंका विजय के
गर्भ में संत्रास क्या था?
यह चिरंतन सत्य है
प्रगति और खोज का आधार है...।
भूतली पर, भूगर्भ और आकाश में,
ऊर्जा के स्रोत और प्रकाश में,
झलकता बस भूख का संसार है...।
भूख न होती तो आदि पुरूष
अग्नि, चक्र को, क्या खोज पाता?
भूख के कारण ही कान्हा,
नाचता, मुरली बजाता...।
भूख के कारण ही भक्ति,
भूख के कारण ही भय है,
भूख ही देती है शक्ति,
भूख ही देती विजय है।
भूख बिन सब ज्ञान कैसा?
तपस्या और ध्यान कैसा?
धर्म कैसा, कर्म कैसा,
भूख बिन विज्ञान कैसा?
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।

Saturday, March 19, 2011

हिज्र का भी नसीब होता है।







दिल का रिश्ता अजीब होता है
दूर  है जो,  करीब होता है।

तन्हा रातों में चाँद भी तनहा
हिज्र का भी  नसीब होता है।

जानो दिल से जिसे भी चाहोगे
खुलूसे दिल का रक़ीब होता है।

देख लेगा  बिना  बहे  आँसू
माँ का दिल भी अजीब होता है।

शाख़े-गुल आँधियों में टूटेगी
सबका अपना सलीब होता है।

ख्वाब में रोटियाँ ही दिखती हैं
आदमी जब  ग़रीब होता है।

यूँ तो दिखता नहीं है वो ‘इबरत’
फिर भी मेरे क़रीब  होता है।

 -सुवर्णा शेखर दीक्षित

Saturday, March 12, 2011

नींद

जैसे ही जागता हूँ
सो जाता हूँ !
सोते हुए देखता हूँ
अपनी नींद टूटने का ख्वाब !
ख्वाब टूटता है हर रोज़
और नींद में बिखर जाता है
टूटे ख्वाब के चुभने से
नहीं टूटती नींद..
क्यों नहीं होता कुछ ऐसा
कि कभी सोते हुए
नींद भूल जाये
आंखें बन्द करना..
फिर कोई ख्वाब
मशाल लेकर
घुस जाये आंखों में
और लगा डाले आग
कम्बख्त नींद को !

Friday, February 25, 2011

यूँ ही आँगन में बम नहीं आते

जो तेरे दर पे हम नहीं आते
तो खुशी ले के गम नहीं आते

बात कुछ तो है तेरी आँखों में
मयकदे वरना कम नहीं आते

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते

होगा इंसान सा कभी नेता
मुझको ऐसे भरम नहीं आते

आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतने गरम नहीं आते

कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते

प्रेम में गर यकीं  हमें  होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते

कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते

Tuesday, February 22, 2011

छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये



लबो पे  हँसी, जुबाँ पर  ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये

दुनिया में  रिश्तों का  सच  जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये

बेकाबू  न हो जाये ये अंतर्मन  का  शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये

बंजारा हो चला दिल, तलब-ए-मुश्कबू में
लाख बेडियाँ चाहे इस पर  डाले रखिये

ये नजरिये का झूठ और दिल के वहम
इश्क सफ़र-ए-तीरगी है नजर के उजाले रखिये

मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये

कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये

 तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने  वो बुजुर्गो कि  मिसालें रखिये

(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)

यकीं न हो तो गूगल अर्थ पे जा के देखो तुम

सभी दिखें नाखुश, सबका दिल टूटा लगता है
तमाम दुनिया का इक जैसा किस्सा लगता है

तुम्हीं कहो किसको दूँ अपने हिस्से का पानी
झुलस रहा ये, वो जल बिन मछली-सा लगता है

रिवायती ग़ज़लें चिलमन पे कह तो दूँ लेकिन
नये जमाने का कपड़ों से झगड़ा लगता है

यकीं न हो तो गूगल अर्थ पे जा के देखो तुम
बड़ा शहर भी खेत खिलोनों जैसा लगता है

नहीं किताबें पढ़ के होता जन-धन संचालन
भले भलों को इसमें खास तजुर्बा लगता है

Wednesday, February 2, 2011

तो अच्छा था

तू दर्दे-दिल को आईना  बना लेती  तो  अच्छा था
मोहब्बत की कशिश दिल में सजा लेती तो अच्छा था

बचाने के लिए तुम खुद को आवारा-निगाही से
निगाहे-नाज को खंजर बना लेती तो अच्छा था

तेरी पलकों के गोशे में कोई आंसू जो बख्शे तो
उसे तू खून का दरिया बना लेती तो अच्छा था

सुकूं मिलता जवानी की तलातुम-खेज मौजों को
किसी का ख्वाब आंखों में बसा लेती तो अच्छा था

ये चाहत है तेरी मरजी, मुझे  चाहे न चाहे तू
हां, मुझको देखकर तू मुस्कुरा देती तो अच्छा था

तुम्हारा हुस्ने-बेपर्दा  कयामत-खेज है कितना
किसी के इश्क को पर्दा बना लेती तो अच्छा था

तेरी निगहे-करम के तो दिवाने हैं सभी लेकिन
झुका पलकें किसी का दिल चुरा लेती तो अच्छा था

किसी के इश्क में आंखों से जो बरसात होती है
उसी बरसात में तू भी नहा लेती तो अच्छा था

तेरे जाने की आहट से किसी की जां निकलती है
खुदारा तू किसी की जां बचा लेती तो अच्छा था.

Monday, January 31, 2011

मूल चाणक्य नीति


चाणक्य सूत्र और अर्थशास्त्र सारांश सहित



आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।

वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश -

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों कस्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

8. चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

14. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

16. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

19. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।
सौजन्य से - समकालीन साहित्य समाचार

प्यार तुझसे हुआ नहीं होता

प्यार तुझसे हुआ नहीं होता
तो मैं इंसान सा नहीं होता

तेरी यादों की गोंद ना होती
टूटकर मैं जुड़ा नहीं होता

मंदिरों में अगर ख़ुदा मिलता
एक भी मयक़दा नहीं होता

काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता

ताज को छू के मौलवी तू कह
पत्थरों में ख़ुदा नहीं होता

झूठ ने फेंका है अणु बम जब से
पाँव पर सच खड़ा नहीं होता

शाम की लालिमा में ना फँसता
तो दिवाकर डुबा नहीं होता

लूट लेते हैं फूल को काँटे
आज दुनियाँ में क्या नहीं होता

Sunday, January 30, 2011

To Kya Baat Hai...

Khuda ki banai is kaynat Mai,
Har Taraf Bas Pyar Hi Ho To Kya Baat Hai..
Tarasti Hai Ankhe Jinke Didar Mai,
Samne Wo Aaye To Kya Baat Hai..
U To Har Koi Deta Hai Dard-e-gam,
Koi Marham De Jaye To Kya Baat Hai..
hatho K Lakiro Mai Takdir Dhundte Hai,
Koi Mukaddar Ban Jaye To Kya Baat Hai..
U To Har Koi Jeeta Hai Apne Liye,
Koi Apna Banaye To Kya Baat Hai..
Pal Pal Ka Hai Zindgi Ka Safar,
Koi Jindgi Ban Jaye To Kya Baat Hai...

Friday, January 14, 2011

परवाह

वो खुद ही तय करता है मंजिल असमानों की....
परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ने की.....
रखता है जो होसला आस्मां छूने का....
उसे नहीं होती परवाह गिर जाने की......

-मिर्ज़ा ग़ालिब......

अब तेरे शहर से कोई नामाबर नहीं आता

तू  उठे  तो उठ जाते हैं  कारवाँ
मेरे जनाजे में ऐसा काफिला नहीं आता,

तू थी  तो हर्फ़-हर्फ़  इबादत  था
तेरे बिना दुआओं में भी असर नहीं आता

कभी हर राह की मंजिल थी  तेरी गली
अब तेरे शहर से कोई नामाबर नहीं आता

एक आंसू नहीं  बहाने का  वादा  था
निभाया, अब लहू आता है अश्क नहीं आता

मेरे दिल के  दर्द  रूह  के  सुकूं
जान जाती है मेरी तू नज़र नहीं आता

Thursday, January 6, 2011

अंग्रेजी नव वर्ष........!!! पता नहीं क्या बाला है......!!!

ना तो जनवरी साल का पहला दिन है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन।जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए।सितंबर,अक्टूबर,नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ,8वाँ,नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है।ये क्रम से 9वाँ,,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है।हिन्दी में सात को सप्त,आठ को अष्ट कहा जाता है,इसे अङ्ग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है।इसी से September तथा October बना।नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अङ्ग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया।

ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।इसका एक प्रमाण और है।जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है???? इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना।चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया।


इन सब बातों से ये निस्कर्ष निकलता है की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था।साल को 365 के बजाय 345 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है।लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू।भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है।दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है!!!तुक बनता है।भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है,सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है।यानि की करीब 4-4.30 के आस-पास और इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे इसलिए उनलोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया।

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं हमारा अनुसरण करते हैं और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का,अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं।कितनी बड़ी विडम्बना है ये!!!!!!

बोलो है बात में दम......?


-आपका चेतन

Monday, January 3, 2011

छोड़ दे....

उससे कह दो मुझे सताना छोड़ दे....
दुसरो के साथ रह कर..
मुझे हर पल जलना छोड़ दे....

या तो कर दे इनकार
की
मुझसे महोब्बत नहीं.....
या गुजरता देख मुझको...
पलटकर मुस्कुराना छोड़ दे.....

न कर बात मुझसे कोई गम नहीं...
न कर बात मुझसे कोई गम नहीं...
यु आवाज सुनकर...
झरोखे पर आना छोड़ दे...

कर दे दिल-ए-बयां....
जो छुपा रखा है....
यु इशारो में...
हाल बताना छोड़ दे....


क्या इरादा है बता दे अब मुझको
यु सहेलियों को मेरे किस्से...
सुनना छोड़ दे.....

है पसंद गुलाबी रंग मुझे...
है पसंद गुलाबी रंग मुझे...
उस लिबास में..
बार बार...
आना छोड़ दे.....


ना कर याद मुझे बेशक तू... कोई गम नहीं....
पर किताबो पर नाम लिख कर...
मिटाना छोड़ दे....

खुदा कर सके ये किस्सा आसान अगर...
या तो तू मेरी हो जा....
या मुझे... अपना बनाना छोड़ दे.......

वफादारी

गैर अपनों से बढकर दिखाई देते है...
हाथ में अपनों के खंज़र दिखाई देते है....
वफादारी की जो रोज़ कसमे खाते थे......
अब गैरो के साथ दिखाई देते है........