आज फिर उनकी बात निकली .
यादो के सफ़र से जैसे कोई बारात निकली .
मै आज भी उसके इन्तजार में खड़ा था उसी मोड़ पर
जहा से आज वो उसके हमसफ़र के साथ निकली .
उसने किया है गुनाह दिल मेरे तोड़ कर .
शायद वो जानती है ...
इसीलिए आज वो झुकी नज़र के साथ निकली .
Dr. Saab
Thursday, December 30, 2010
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
काफी अरसा बीत गया ,
ना जाने वो कैसी होगी .
वक़्त की सारी कडवी बातें
चुप चुप के वो सहती होगी .
अब भी भीगी बारिश में वो
बिन छतरी के चलती होगी .
मुझसे बिछड़े अरसा हो गया .
अब वो किससे लडती होगी .
अच्छा था जो साथ में थे ..
बाद में उसने सोचा होगा .
अपने दिल की सारी बातें ,
खुद ही खुद से करती होगी ..
आंखे नाम भी होती होगी .
याद वो जब भी करती होगी .
काफी अरसा बीत गया..
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
Dr. Chirayu Mishra
ना जाने वो कैसी होगी .
वक़्त की सारी कडवी बातें
चुप चुप के वो सहती होगी .
अब भी भीगी बारिश में वो
बिन छतरी के चलती होगी .
मुझसे बिछड़े अरसा हो गया .
अब वो किससे लडती होगी .
अच्छा था जो साथ में थे ..
बाद में उसने सोचा होगा .
अपने दिल की सारी बातें ,
खुद ही खुद से करती होगी ..
आंखे नाम भी होती होगी .
याद वो जब भी करती होगी .
काफी अरसा बीत गया..
ना जाने अब वो कैसी होगी ..
Dr. Chirayu Mishra
Wednesday, December 29, 2010
नशा
नशा जरुरी है...
ज़िन्दगी के लिए...
पर सिर्फ शराब ही नहीं है बेखुदी के लिए.....
किसी की महोब्बत में डूब कर तो देखो....
बड़ा हसीं समंदर है.....
खुदखुशी के लिए.......
Maoo~
ज़िन्दगी के लिए...
पर सिर्फ शराब ही नहीं है बेखुदी के लिए.....
किसी की महोब्बत में डूब कर तो देखो....
बड़ा हसीं समंदर है.....
खुदखुशी के लिए.......
Maoo~
Thursday, December 23, 2010
अच्छा लगता है
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
-नवीन चतुर्वेदी
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
-नवीन चतुर्वेदी
अनवरत
मै मांगती हूँ
तुम्हारी सफलता
सूरज के उगने से बुझने तक
करती हूँ
तुम्हारा इंतजार
परछाइयों के डूबने तक
दिल के समंदर में
उठती लहरों को
रहती हूँ थामे
तुम्हारी आहट तक
खाने में
परोस के प्यार
निहारती हूँ मुख
महकते शब्दों के आने तक
समेटती हूँ घर
बिखेरती हूँ सपने
दुलारती हूँ फूलों को
तुम्हारे सोने तक
रात को खीच कर
खुद में भरती हूँ
नींद के शामियाने में
सोती हूँ जग-जग के
तुम्हारे उठने तक
इस तरह
पूरी होती है यात्रा
प्रार्थना से चिन्तन तक।
Monday, December 20, 2010
जान बाकि है ...
दुआ देने वाले का फरमान बाकि है ...
उनकी वफ़ा का इम्तहान बाकि है ...
मेरी मौत पर भी उनकी आँखों में आंसू नहीं ..
उन्हें शक है की मुझमे अभी जान बाकि है ...
उनकी वफ़ा का इम्तहान बाकि है ...
मेरी मौत पर भी उनकी आँखों में आंसू नहीं ..
उन्हें शक है की मुझमे अभी जान बाकि है ...
दोस्ती
कुछ यादें है उन लम्हों की ..
जिन लम्हों में हम साथ रहे ..
खुशियों से भरे जस्बात रहे ..
एक उम्र गुजारी है हमने ..
जहा रोते हुए भी हस्ते थे ...
कुछ कहते थे कुछ सुनते थे ..
हम रोज़ सुबह जब मिलते थे ..
तोह सब के चहरे खिलते थे ...
क्या मस्त वो मंज़र होता था ..
सब मिलकर बातें करते थे ..
हम सोचो कितना हस्ते थे ..
वो गूँज हमारी हंसने की ..
अब एक पुराणी याद बनी
ये बातें है उन लम्हों की ...
जिन लम्हों में हम साथ रहे .....
chetan bhandari
जिन लम्हों में हम साथ रहे ..
खुशियों से भरे जस्बात रहे ..
एक उम्र गुजारी है हमने ..
जहा रोते हुए भी हस्ते थे ...
कुछ कहते थे कुछ सुनते थे ..
हम रोज़ सुबह जब मिलते थे ..
तोह सब के चहरे खिलते थे ...
क्या मस्त वो मंज़र होता था ..
सब मिलकर बातें करते थे ..
हम सोचो कितना हस्ते थे ..
वो गूँज हमारी हंसने की ..
अब एक पुराणी याद बनी
ये बातें है उन लम्हों की ...
जिन लम्हों में हम साथ रहे .....
chetan bhandari
Friday, December 17, 2010
माना तुमसे कमतर हैं
माना तुमसे कमतर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वो जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं
आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
अबकी साँसे थमी हैं जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वो जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं
आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
अबकी साँसे थमी हैं जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
बचपन का ज़माना होता था......
बचपन का ज़माना होता था ....
खुशियों का ख़जाना होता था....
चाहत चाँद को पाने की...
दिल तितली का दीवाना होता था...
खबर ना थी की कुछ सुबह की...
ना शामो का ठिकाना होता था...
थके हरे स्कूल से आते...
पर खेलने भी जाना होता था....
दादी की कहानी होती थी...
परियों का फ़साना होता था...
बारिश में कागज की कश्ती थी...
हर मौसम सुहाना होता था...
हर खेल में साथी होते थे..
हर रिश्ता निभाना होता था...
पापा की डांट वो गलती पर....
मम्मी का मानना होता था....
गम की ज़ुबा ना होती थी...
ना ज़ख्मो का पैमाना होता था....
रोने की वजह ना होती थी...
ना हसने का बहाना होता था...
अब नहीं रही वो ज़िन्दगी...
जैसा बचपन का ज़माना होता था......
खुशियों का ख़जाना होता था....
चाहत चाँद को पाने की...
दिल तितली का दीवाना होता था...
खबर ना थी की कुछ सुबह की...
ना शामो का ठिकाना होता था...
थके हरे स्कूल से आते...
पर खेलने भी जाना होता था....
दादी की कहानी होती थी...
परियों का फ़साना होता था...
बारिश में कागज की कश्ती थी...
हर मौसम सुहाना होता था...
हर खेल में साथी होते थे..
हर रिश्ता निभाना होता था...
पापा की डांट वो गलती पर....
मम्मी का मानना होता था....
गम की ज़ुबा ना होती थी...
ना ज़ख्मो का पैमाना होता था....
रोने की वजह ना होती थी...
ना हसने का बहाना होता था...
अब नहीं रही वो ज़िन्दगी...
जैसा बचपन का ज़माना होता था......
Thursday, December 16, 2010
अंदाज
उसने दिन रात सताया मुझको इतना
की नफरत भी हो गई... और महोब्बत भी हो गई...
उसने इस अहतराम से मुझसे महोब्बत की...
के गुनाह भी न हुआ... और इबादत भी हो गई...
मत पूछ के उसके महोब्बत करने का अंदाज कैसा था...
उसके इस शिद्दत से गले लगाया की...
मौत भी न हुई... और जन्नत भी मिल गई...
- अनिवेश
की नफरत भी हो गई... और महोब्बत भी हो गई...
उसने इस अहतराम से मुझसे महोब्बत की...
के गुनाह भी न हुआ... और इबादत भी हो गई...
मत पूछ के उसके महोब्बत करने का अंदाज कैसा था...
उसके इस शिद्दत से गले लगाया की...
मौत भी न हुई... और जन्नत भी मिल गई...
- अनिवेश
और हम भुला ना सके ...
महोबत से महोबत को पा न सके ...
अपना हाल - ए -दिल उन्हें जता ना सके .
बिन कहे ही सब पढ़ लिया उनकी निगाहों ने ..
और हम चाहकर भी नज़रें चुरा ना सके ..
आज वो दूर सही हमसे लाख मगर ,
खुद को हमसे आजाद करा ना सके ...
कुछ टूटे वो ,
और कुछ हमे तोड़ गए ..
और एक हम थे
जो खुद को बचा ना सके ..
ना माँगा हमने ज़िन्दगी भर का वादा उनसे ..
वो तो चार दिन का भी साथ निभा ना सके ..
अब कहते है की वो प्यार नहीं खेल था ...
और हम उस खेल के कायदे भुला ना सके ...
न जीत सके वो कभी हमसे ..
और अपने से हम उन्हें कभी हरा ना सके ,,
थोडा वो तो थोडा हम हँसे साथ में ...
पर उस जीत के बाद भी कभी मुस्कुरा ना सके ...
गम ये नहीं की वो ख़फा है हमसे..
गम - ए -उल्फत से कभी उन्हें गुज़रा ना सके
फिर भी एक ठंडक सी है दिल में मेरे ...
के वो भूले नहीं ....
और हम भुला ना सके ...
Dr. Chirayu Mishra
अपना हाल - ए -दिल उन्हें जता ना सके .
बिन कहे ही सब पढ़ लिया उनकी निगाहों ने ..
और हम चाहकर भी नज़रें चुरा ना सके ..
आज वो दूर सही हमसे लाख मगर ,
खुद को हमसे आजाद करा ना सके ...
कुछ टूटे वो ,
और कुछ हमे तोड़ गए ..
और एक हम थे
जो खुद को बचा ना सके ..
ना माँगा हमने ज़िन्दगी भर का वादा उनसे ..
वो तो चार दिन का भी साथ निभा ना सके ..
अब कहते है की वो प्यार नहीं खेल था ...
और हम उस खेल के कायदे भुला ना सके ...
न जीत सके वो कभी हमसे ..
और अपने से हम उन्हें कभी हरा ना सके ,,
थोडा वो तो थोडा हम हँसे साथ में ...
पर उस जीत के बाद भी कभी मुस्कुरा ना सके ...
गम ये नहीं की वो ख़फा है हमसे..
गम - ए -उल्फत से कभी उन्हें गुज़रा ना सके
फिर भी एक ठंडक सी है दिल में मेरे ...
के वो भूले नहीं ....
और हम भुला ना सके ...
Dr. Chirayu Mishra
Tuesday, December 14, 2010
तलबगार है बहुत....
उस दिल-ए-हस्ती को हमसे प्यार है बहुत.....
मगर वो शख्स भी फ़नकार है बहुत.....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
और मिलता है ऐसे
के मेरा तलबगार है बहुत....
मगर वो शख्स भी फ़नकार है बहुत.....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
ना मिले....
तो मिलने की जुस्तजू भी नहीं करता....
और मिलता है ऐसे
के मेरा तलबगार है बहुत....
तन्हा रहने नहीं देता.....
इश्क उसका मुझे तन्हा रहने नहीं देता...
साथ उसके ये ज़माना रहने नहीं देता...
महफ़िलो में मुझको रखता है वो तन्हा तन्हा...
जो तन्हाई में कभी मुझको तन्हा रहने नहीं देता.....
साथ उसके ये ज़माना रहने नहीं देता...
महफ़िलो में मुझको रखता है वो तन्हा तन्हा...
जो तन्हाई में कभी मुझको तन्हा रहने नहीं देता.....
तन्हाई थी....
मेरे इश्क में सच्चाई थी..
आसमा झुक जाये इतनी गहराई थी....
फिर भी खुदा को मंजूर न हुआ इश्क मेरा...
क्यूंकि नसीब में लिखी तन्हाई थी....
आसमा झुक जाये इतनी गहराई थी....
फिर भी खुदा को मंजूर न हुआ इश्क मेरा...
क्यूंकि नसीब में लिखी तन्हाई थी....
Tuesday, December 7, 2010
Monday, December 6, 2010
एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ ,
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
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