Tuesday, February 22, 2011

छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये



लबो पे  हँसी, जुबाँ पर  ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये

दुनिया में  रिश्तों का  सच  जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये

बेकाबू  न हो जाये ये अंतर्मन  का  शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये

बंजारा हो चला दिल, तलब-ए-मुश्कबू में
लाख बेडियाँ चाहे इस पर  डाले रखिये

ये नजरिये का झूठ और दिल के वहम
इश्क सफ़र-ए-तीरगी है नजर के उजाले रखिये

मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये

कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये

 तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने  वो बुजुर्गो कि  मिसालें रखिये

(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)

No comments:

Post a Comment