Friday, March 5, 2010

हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है

कभी खामोश लम्हों में मुझे अहसास होता है
 
कि जैसे ज़िन्दगी भी रूह का बनवास होता है

 
जिसे वो रौनके होने पे अक्सर भूल जाता है
 
वही तन्हाईओं में आदमी के पास होता है

 
सुना था दर्द होता है ग़मों का एक सा लेकिन 

हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है

 
किसी के वास्ते बरसात है बदला हुआ मौसम
 
किसी के वास्ते ये साल भर की आस होता है

 
जमा होते हैं शब् भर सब सितारे चाँद के घर में
 
न जाने कौन से मुद्दे पे ये इजलास होता है

 
'रवि ' मुमकिन है सहरा में कहीं मिल जाये कुछ पानी
 
समंदर तो हकीकत में मुकम्मल प्यास होता है

 
कवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'

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